SEBA Class 10 Hindi Chapter 5 सड़क की बात

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SEBA Class 10 Hindi Chapter 5 सड़क की बात

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सड़क की बात

गद्यांश

अभ्यासमाলা

बोध एवं विचार:

1. एक शब्द उत्तर दो:

(क) गुरुदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर किस आख्या से विभूषित है?

उत्तर: गुरुदेव रवीन्दनाथ ठाकुर “विशवकवि” आख्या से विभूषित है।

(ख) रवीन्द्रनाथ ठाकुर जी के पिता का नाम क्या था? 

 उत्तर: रवीन्द्रनाथ ठाकुर जी के पिता का नाम था देवेन्दनाथ ठाकुर। 

(ग) कौन–सा काव्य–ग्रंथ रवीन्द्रनाथ ठाकुर जी की कीर्ति का आधार–स्तंभ है?

उत्तर: कवि शिरोमणि रवीन्द्रनाथ ठाकुरजी की कीर्ति का आधार–स्तंभ है उनका काव्य–ग्रंथ गीतांजलि।

(घ) सड़क किसकी आखिरी घड़ियों का इंतजार कर रही है?

उत्तर: सड़क शाप की आखिरी घड़ियों का इंतजार कर रही है।

(ङ) सड़क किसकी तरह सब कुछ महसूस कर सकती है?

उत्तर: सड़क अंधे की तरह सबकुछ महसूस कर सकती है।

S.L. No.CONTENTS
गद्यांश
पाठ – 1नींव की ईंट
पाठ – 2छोटा जादूगर
पाठ – 3नीलकंठ
पाठ – 4भोलाराम का जीव
पाठ – 5सड़क की बात
पाठ – 6चिट्ठियों की अनूठी दुनिया
पद्यांश
पाठ – 7साखी
पाठ – 8पद–त्रय
पाठ – 9जो बीत गयी
पाठ – 10कलम और तलवार
पाठ – 11कायर मत बन
पाठ – 12मृत्तिका
रचना

2. पूर्ण वाक्य में उत्तर दो:

(क) कवि–गुरु रवीन्द्रनाथ ठाकुर का जन्म कहाँ हुआ था?

उत्तर: कविगुरु रवीन्दनाथ ठाकुर का जन्म कोलकाता के जोरासाँको में हुआ था।

(ख) गुरुदेव ने कब मोहनदास करमचँद गाँधी को ‘महात्मा के रुप में संबोधित किया था?

उत्तर: गुरुदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर द्वारा निर्मित बंगाल के शैक्षिक सांस्कृतिक केन्द्र “शांतिनिकेतन में आने पर मोहन दास करमचाँद गाँधी को आपने “महात्मा” के रूप में संबोधित किया था।

(ग) सड़क के पास किस कार्य के लिए फुरसत नही हैं?

उत्तर: सड़क के पास अपनी कड़ी और सूखी सेज पर एक मुलायम हरी घास या दूब डालना था अपने सिरहाने के पास एक छोटा सा नीले रंग का वनफूल खिलवाने के लिए फुरसत नहीं है।

(घ) सड़क ने अपनी निद्रावस्था की तुलना किससे की है?

उत्तर: सड़क ने अपनी निद्रावस्था की तुलना चिरनिदित सुदीर्घ अजगर के साथ की है।

(ङ) सड़क अपनी कड़ी और सूखी सेज पर क्या नही डाल सकती?

उत्तर: सड़क अपनी कड़ी और सूखी सेज पर मुलायम हरी घास या दूब डाल नहीं सकती।

3. अति संक्षिप्त उतर दो (लगभग २५ शब्द में):

(क) रवीन्द्रनाथ ठाकुर जी की प्रतिभा का परिचय किन क्षेत्रो में मिलता है?

उत्तर: विशवभर के महान व्यक्तियों में से रवीन्द्रनाथ ठाकुर जी भी एक प्रातः स्मरणीय व्यक्ति है। आपकी प्रतिभा का परिचय मुख्यतः काव्य जगत मे व्यपक है। आपने कई हजार कविताओं, गीतों, कहानियों रुपकों एवं निबंध की रचना की। आपने उपन्यास भी लिखे है। ‘गीतांजली’ काव्य पर आपको ‘नोबेल’ पूरस्कार भी मिला है। आपकी काबुलीवाला शीर्षक कहानी विश्व प्रसिद्ध है। तदुपरांत “गोरा” और “घरे–बाइरे” उपन्यास विशेष रूप से तदुपरांत उल्लेखनीय है।

कविगुरु ठाकुरजी वहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। साहित्य क्षेत्र के अलावा आप एक प्रसिद्ध शिक्षाविदभी थे । समाज सुधार से लेकर चित्र, संगीत, रुपक आदि दिशाओं तक आपकी प्रतिभा का छाप है। आपके द्वारा बनाई गई “शान्तिनिकेतन प्रतिभा का स्वाक्षर हमेशा के लिए रहेगी।

(ख) ‘शान्तिनिकेतन’ के महत्व पर प्रकाश डालो? 

उत्तर: ‘शान्तिनिकेतन’ कविगुरु रवीन्द्रनाथ ठाकुर जी द्वारा स्थापित एक शैक्षिक–सांस्कृतिक केन्द्र है। अभी यह केन्द्र विशव–भारती विश्वविद्यालय के रूप में प्रसिद्ध है। भारतवर्ष के विभिन्न राज्य के अनेक विद्यार्थी उन्नत शिक्षा लेने के लिए शांतिनिकेतन में आते है। यहाँ पर्यायक्रम चित्रशिल्प, संगीत, नृत्य आदि विषयों पर प्रशिक्षण दिया जाता है।

(ग) सड़क शाप–मुक्ति की कामना क्यो कर रही?

उत्तर: सड़क स्वयं को एक शाप से ग्रस्त समझती है जिस कारण वह हमेशा से स्थिर है, अविचल है। इस शाप के कारण ही वह बहुत दिनों से बेहोशी की नींद सो रही है। सड़क अपनी इस स्थिरता को समाप्त करना चाहती है। इसलिए वह शाप मुक्ति की कामना कर रही है।

(घ) सुख को घर–गृहस्थी वाले व्यक्ति के पैरों की आहट सुनकर सड़क क्या समझ जाती है?

उत्तर: सुख की घर–गृहस्थी वाले व्यक्ति के पैरो की आहट सुनकर सड़क यह महसूस करती है कि वे हर कदम पर सुख की तस्वीर खीचता है, आशा के यीज बोता है। अर्थात उनके जीवन में खुशियाँ ही खुशियाँ है।

(ङ) गृहहीन व्यक्ति के पैरों की आहट सुनने पर सड़क को क्या बोध होता है?

उत्तर: गृहहीन व्यक्ति के पैरों की आहट सुननेपर सड़क को यह बोध होता है कि उसके पदक्षेप में न आशा है, न अर्थ है, उसके कदमो में न दायाँ हे, न बायाँ है, अर्थात उसके कदमो में निराशा और निरर्थकता भरा है।

(च) सड़क अपने ऊपड़ पड़े एक चरण–चिह्न को क्यों ज्यादा देर तक नहीं देख सकती?

उत्तर: सड़क अपने ऊपड़ परे एक चरण चिह्न को ज्यादा देर तक देख नहीं सकती क्योंकि नए नए पाँव आकर पुराने चिह्नों को पोंछ जाते है। जा चला जाता है वह तो पीछे कुछ छोड़ ही नही जाता। समाप्ति और स्थायित्व का अगर थोड़ा कुछ मिलता तो वह भी हजारो चरणों के तले लगातार कुचला जाकर कुछ ही देर में वह धूल में मिल जाता है।

(छ) बच्चों के कोमल पाँवों के स्पर्श से सड़क में कौन–से मनोभाव बनते है?

उत्तर: बच्चो के छोटे छोटे कोमल पाँवकेस्पर्श को पाकर सड़क वहुत प्रसन्न अनुभव करती है। लेकिन इसके बदले नन्हे बच्चो को देने के लिए सड़क के पास कुछ नहीं है। उस समय सड़क को कुसुम कली के समान कोमल होने को साध होती है ताकि सड़क पर चलने में यो खेलने कुदने में बच्चों को कोई कठिनाई न हो

(ज) किसलिए सड़क को न हँसी है, न रोना?

उत्तर: सड़क को इसलिए न हँसी है न रोना कि उस पर ही अमीर और गरीब, जन्म और मृत्यु सब कुछ प्रतिदिन नियमित रूप से चलता रहा है यद्यापि सड़क अपने को सुख दुःख से परे रखती है और खुद–अकेली पड़ी रहती है वेहौशी की तरह। 

(झ) राहगीरों के पाँवों के शब्दों को याद रखने के संदर्भ में सड़क ने क्या कहा है?

उत्तर: राहगीरों के पावों के शब्दों को याद रखने के संदर्भ में सडक कहती है कि उस पर निरंतर अनेक चरण लगातार चलते रहते है। किसी चरण स्पर्श जो स्थायित्व नहीं रहती। सड़क कहती है कि वह सबको भलीभाती पहचानती है पर याद नही रख पाती कि वे कहाँ चले जाते है और फिर वापस नहीं आते। तथापि दो एक कोमल स्पर्श जो पिता का आशीर्वाद और माता का स्नेह से भरा हुआ हो और मेरी धूल को अपना घर बना लेते हो–सिर्फ उन पाँवोकी याद कभी आ जाती है। पर इनके लिए शोक या संताप करने की घड़ी की छुट्टी नही मिलती।

4. संक्षिप्त उत्तर दो:

(क) जड़ निंदा में पड़ी सड़क लाखों चरणों के स्पर्श से उनके बारे में क्या–क्या समझ जाती है?

उत्तर: जड़निदा मे पड़ी सड़क लाखों चरणों के स्पर्श से यह महसूस करती है कि कौन लोग घर जा रहा है, कौन परदेश के रहा है, कौन काम से जा रहा है, कौन आराम करने जा रहा है। कौन उत्सव में जा रहा है और कौन श्मशान को जा रहा है। वह आपने ऊपर से गुजरनेवाले लोगों की सुख–दुख की कहानी पढ़ लेती है। वह जानती है कि चरणों के नया स्पर्श पुराने स्पर्श को मिटा देता है। सड़क यह भी महसूस करती कि लोग उसके ऊपम ही लक्ष की और चलते है पर उसके प्रति कभी भी कृतज्ञता का प्रकट नहीं करता वल्कि तिरस्कार ही मिलता।

(ख) सड़क संसार की कोई भी कहानी क्यों पूरी नही सुन पाती?

उत्तर: सड़क सैकड़ो, हजारों बषों से लाखो–करोंड़ों लोगो की हँसी, गीत, और बाते सुनती आई है। पर कोई भी कहानी को पुरा नहीं सुन पाती है। इसका कारण यह है कि किसी आदमी की थोड़ी सी बात के बाद फिर जब सड़क दोवाड़ा कान लगाती ता उस आदमी का जीवन तबतक सम्पात ही हो जाता है। इससे वह सावित होता है कि सड़क के जीवन में जो स्थिरता है वह स्थिरता मनुष्य जीवन में नहीं है। इसलिए सड़क के पास टूटी–फूटि बातें और विखरे हुए गीत अनेक है मगर कोई पूरी कहानी नही है जो सड़क सून सकती।

(ग) “मै किसी का भी लक्ष्य नहीं हूँ। सबका उपाय मात्र हूँ।”– सड़क ने ऐसा क्यों कहा है?

उत्तर: सड़क को यही संताप सताता रहता है कि किसी भी लोग उस पर कदम रखना नहीं चाहता, प्रसन्नतापूर्वक खड़ा रहना पसन्द नहीं करता। सड़क ने परम धैर्य के साथ किसी को उनेक घर के द्वार पहुँचाती है तो किसी को उत्सवो की जगह और किसी को श्मशान पहुँचाती है। मगर इसके बदले लोग उसे तिरस्कार ही करते है। इसलिए सड़क कतही है कि मैं किसी का भी लक्ष्य नहीं सबका उपाय मात्र है।

(घ) सड़क कब और कैसे घर का आनंद कभी–कभी महसूस करती है?

उत्तर: सड़क कभी कभी घर का आनन्द महसूस करती है। जब छोटे छोटे बच्चे हँसते हँसते उसके पास आते है और शोरगुल मचाते हुए उसके पास आकर खेलने लगते तब वह महसूस करती है कि वे धूल में पिता का आशीर्वाद और माता का स्रेह और प्यार छोड़ जाते है। वे धूल को ही अपने वश में कर लेते है और कोमल हाथो से हौले हौले थपकिया दे–देकर उसे सुलाना चाहते है। अपना निर्मल हृदय लेकर बैठे–बैठे वे उसके साथ बाते करते है।

(ङ) सड़क अपने ऊपर से नियमित रूप से चलने वालों की प्रतीझा क्या करती है?

उत्तर: सड़क अपनी ऊपर से नियमित रूप से चलनेवालो को अच्छी तरह पहचानती है। वह कल्पना करती है कि किस प्रकार एक थका हुआ व्यक्ति संध्या समय आकाश की भाँति म्लान दृष्टि से किसी के मुँह की ओर देख घर लौटता है। सड़क उसे घर तक पहुचाने में मदद करती है।

5. सम्यक् उत्तर दो:

(क) सड़क का कौन–सा मनोभाव तुम्हे सर्वाधिक हृदयस्पर्शी लगा और क्यों?

उत्तर: सड़क का वह मनोभाव मुझे सर्वाधिक हृदय स्पर्शा लगा कि बच्चो के कोमल पाँवों के लिए वह अपने को बहुत कठोर समझती और खुद कोमल कली बनजाने की कामना करती है ताकि उन्हें कठिनाई न हो यद्यापि सडक अपनी विवशता और जड़ता के कारण बना नही दे पाती। बच्चो के इतने स्नेह और प्यार को पाकर भी जवाब नहीं दे पाती ।

लेखक रवीन्द्रनाथ ठाकुर जी ने इसके जरिए सड़क जैसी जड़ था निर्जीव बंस्तु को इतना सजीव और चेतन रूप दिया जो मनुष्य की तरह सुख–दुःख को अनुभव कर सकती। इसलिए यह मुझे बहुत हृदयस्पर्शी लगा है।

(ख) सड़क ने अपने बारे मे जो कुछ कहा है, उसे संक्षेप मे प्रस्तुत करो?

उत्तर: सड़क महसूस करती है कि वह शाप से ग्रस्त होने के कारण स्थिर और अविचल है। वह अन्य चेतन प्राणिओ की तरह चलना चाहती हैं, बोलना–चाहती है। सड़क उसके ऊपर चलनेवाले लागो की सुख–दुःख को जानती है पर वे उसे कभी भी लक्ष नहीं मानता, उसे कृतज्ञता नही दिखाता। वह केवल लक्ष तक पहुँचानेवाली उपाय मात्र है। कोई भी प्रसन्नतापूर्वक पाँव नहीं रखना चाहता।

सड़क को दुःख है कि वह नन्हें बालको का स्नेह और प्यार पाकर भी उसका उत्तर देने में असमर्थ है। वह कहती है कि जो लोग लक्ष तक जाने के लिए ठकाहुवा है और मदद के लिए किसी की ओर मुह देखते हुए रहतेहै उन्हें घर पहुँचाने में प्रतीक्षा करती है। लागों के जन्म और मृत्यु आदि क्रियाकलाप से वह हमेशा अपने को परे रखती है। उसके लिए रोक या संताप करने की छुट्टी ही नहीं है। वह केवल अकेली पड़ी रहती है बिना किसी व्यक्ति की हँसी और रोने की याद से।

(ग) सड़क की बातो के जरिए मानव जीवन की जो बातें उजागर हुई है, उन पर संक्षिप्त काश डालो?

उत्तर: सड़क की बातों के जरिए उजागर हुँई मानव जीवन की कई महत्वपूर्ण बातों का विवरण नीचे दिए गए है।

मानव चेतन और सजीव प्राणी है। हर एक का लक्ष अलग अलग है। अपने कर्म के अनुसार उन्हे फल मिलता है। जिस व्यक्ति के पास सुख की घर है, स्रेह की छाया है वे आशा के बोज बोता है और जिसके पास नहीं वे निराशा और निरर्थक जीवन गुजरते है। मनुष्य जीवन की ये आशा–निराशा, सुख–दुख और सार्थकता–निरर्थकता का हिसाव भी असम्पूर्ण रहा है कभी भी इसकी स्थिरता और समाप्ति नही रही, क्योकि मानव जीवन के पुराने आदर्श को हँसी–खुशी को नये लागों के कर्म–आदर्श की चरणस्पर्ष मिटा देती है।

आशा–आकांखा की प्राप्ति और निराशा की समाप्ति के लिए मानव लड़ाइ करती आई है। पर सभी का कर्म अधुरी रहती है। किसी भी लोग अपनी कर्मपूर्ति के लिए मृत्यु लोक से लॉट नहीं आते। तथापि लोग समाप्ति और स्थायित्व के लिए कुछ न–कुछ–कर्म में लगे रहे है। समय बदलने के साथ साथ आशीवाद और अभिशाप का रंग भी धूल में मिल जाता है ।

मनुष्य ससाजिक प्राणी है। कोई भी व्यक्ति दूसरों की सहायता विना अपनी लक्ष तक नही पहुँच जाति । सामजिक विच्छेद के कारण लोग एक दूसरों को प्यार के बदले घृना करती है, कृतज्ञता दिखाने के बदले कृतघ्न होते है और मदद देने के बदले बाधक वन जाते है। व्यक्ति के ऐसे आचरणों के कारण एक सरव समाज नीरव हो जाते है, गरीब अमीर वन जाते है और अमीर भी गरीब वन जाते समाप्ति में अमीर हो या गरीब हो धूल के स्रोत की तरह उड़ता जाता है।

6. ससंग व्याख्या करो:

(क) “अपनी इस गहरी जड़ निद्रा में लाखों चरणों के स्पर्श से उन हृदयों को पढ़ লती हूँ।”

उत्तर: यह पंक्तिया हमारी पाठ्य पुस्तक “आलोक भाग-२ के अन्तर्गत ‘विश्वकवि, गीतकार, निबंधकार से लेकर बहुमुखी प्रतिभा के धनी रवीन्द्रनाथ ठाकुर जी का आत्मकथात्मक निबंध “सड़क की बात” शीर्षक पाठ से लिया गया है।

इसमे निबंधकार कविगुरु रवीन्द्रनाथ ठाकुर जीन सड़क जैसी निर्जीब वस्तु को सजीव के समान सुख–दुख को अनुभव करने वालो के रूप में दिखाना चाहता है।

कविगुरु के अनुसार सड़क भी अंधे की तरह सबकुछ महसूँस कर सकती है। वह अभिशप्त होकर गहरी जड़ निद्रा में पड़ी–पड़ी उसके ऊपर चलनेवाले लोगों के पैरों की ध्वनि या आहट दिन–रात सुनती आई है और उसके हृदयों को जान लेति है कि कौन घर जा रहा है, कौन परदेश जा रहा है, कौन उत्सव में जा रहा है, और कौन श्मशान को जा रहा है। इस प्रकार गुरुजी ने हर एक मनुष्य के लक्ष तक पहुँत जाने में मदद देनेवाला सड़क को चेतन प्राणी के समान मान लिया है। 

इसमें कविगुरु ठाकुर जी की सुक्ष्म तथा पैनी दृष्टि का झलक मिल गया है।

(ख) “मुझे दिन–रात यही संताप सताता रहता है कि. मुझ पर कोई तबीयत से कदम नही रखना चाहता?

उत्तर: यह पंक्तिया हमारी पाठ्य पुस्तक आलोक–भाग-२ के अन्तर्गत ‘सड़क की बात’ शीर्षक रवीन्द्रनाथ ठाकुर विरचित आत्मकथात्मक निबंध से लिया गया है। हम कथन के जारिए निबंधकार ठाकुर जी ने सड़क किस प्रकार मनुष्य के अकृतज्ञता का स्वीकार बन गया है उसे दिखाना चाहता है।

लोग सड़क के ऊपर ही चलते हुए अपनी लक्ष चक पहुँच जाती है। सड़क के विना लोग अपनी लक्ष की और नही चल सकते। दराचल इसके लिए लोग सड़क को बधाई देना चाहिए, कृतज्ञता का नाम नही लेता। मनुष्य के इस आचरण के लिए सड़क को संताप सताता रहता है।

जो परम धैर्य के साथ लोगों को उनके घर के द्वार तक पहुँचाती है उस पर लोग तबीयत से कदम नहीं रचना चाहता। यह सोचकर सड़क को वहुत दुःख लगी है जो उसे दिन–रात सताता रहता है। ठाकुर जीने इस उक्ति के जरिए सड़क जैसी निर्जीव वस्तुको सजीव के समान अनुभवशील बनाकर मानवीकरण किया है।

(ग) “मैं अपने ऊपर कुछ भी पड़ा रहने नहीं देती, न हँसी, न रोना, सिर्फ मैं ही अकेली पड़ी हुई हूँ और पड़ी रहूँगी?

उत्तर: यह पंक्तिया हमारी पाठ्य पुस्तक आलोक भाग–२ के अन्तर्गत कविगुरु रवीन्दनाथ ठाकुर विरचित “सड़क की बात” शीर्षक आत्मकथामुलक निबंध से लिया गया है।

इसमें लेखक ठाकुर जी ने सड़क का मानवीकरण करते हुए उस पर पड़नेवाले सुख–दुखं या हँसी–रोने की हक पर प्रतिक्रिया व्यक्त किया है।

सड़क महसूँस करती है कि उसे निरन्तर जड़ और स्थिर रहने का शाप ‘मिला हुँआ है। उस पर चलनेवाले चाहे अमीर हो या गरीब सभी लोगों ने अपना हक समान रूप से प्राप्त किया है उन लोगो के जन्म और मृत्यु आदि क्रियाकलाप भी सड़क द्वारा ही संभव है पर सड़क इन हँसी रोने को अपना पास रखना नहीं चाहता। जिसने मनुष्य को लक्ष तक पहुँचने में मदद करती है–उससे मनुष्य कही भी मित्रता का सम्बंध स्वीकार नहीं किया। अतः सड़क अपने को मनुष्य के सुख दुख से परे रखती है और स्वयं ही अकेली पड़ी रहती है तथा पड़ी रहेगी।

भाषा एवं व्याकरण ज्ञान:

1. निम्नलिखित सामासिक शब्दों का विग्रह करके समास का नाम লিखो:

दिन–रात, जड़निद्रा, पगध्वनि, चौराहा, प्रतिदिन, आजीवन, अविल, राहखर्च, पथभ्रष्ट, नीलकंठ, महात्मा, रातोरात 

उतर: दिन – रात – दिन और रात–द्वन्द्व समास।

जड़निद्रा – जड़ है जो निद्रा – कर्मधारय।

पगध्वनि – पग की ध्वनि – सम्बंध तत्पुरुष।

चौराहा – चार राहों का समाहार – द्विगु।

प्रतिदिन – दिन–दिन – अव्ययीभाव। 

आजीवन – जीवन पर्यन्त – अव्ययीभाव।

राहखर्च – राह के लिए खर्च–सम्प्रदान तत्पुरुष।

पथभ्रष्ट – पथ से भ्रष्ट – अपादान तत्पुरुष।

नीलकंठ – नीला है कंठ जिसका (शिव) – बहुब्रीहि।

महात्मा – महान है जो आत्मा – कर्मधारय।

रातोरात – रात ही रात – अव्ययीभाव।

2. निम्नांकित उपसर्गो का प्रयोग करके दो दो शब्द बनाओ:

परा, अप, अधि, उप, अभि, अति, सु, अव

उत्तर: परा – परा + जय = पराजय। 

परा + अधीन = पराधीन।

अप – अप + मान = अपमान। 

अप + शब्द = अपशब्द।

उप – उप + मन्त्री = उपमन्त्री। 

उप + नाम = उपनाम।

अभि – अभि + शाप = अभिशाप। 

अभि + उदय = अभ्युदय।

अति – अति + आचार = अत्याचार। 

अति + अन्त = अत्यन्त।

सु – सु + आगत = स्वागत। 

सु + कर्म = सुकर्म।

अव – अवगुण + गुण = अवगुण। 

अव + शेष = अवशेष। 

3. निम्नलिखित शब्दों से उपसर्गो को अलग करो:

अनुभव, बेहोश, परदेश, खुशबू, दुर्दशा, दुस्साहस, निर्दय–

उत्तर: अनुभव – अनु।

परदेश – पर।

दुर्दशा – दुः।

निर्दय – नि।

बेहोश – बे।

खुशबू – खुश।

दुस्साहस – दुः।

4. निम्नांकित शब्दो के दो–दो पर्यायवाची शब्द लिखो: 

सड़क, जंगल, आनंद, घर, संसार, माता, आँख, नदी

उत्तर: सड़क – पथ, राह।

आनंद – हर्ष, प्रसन्न।

संसार – दुनिया, जगत, लोक।

आँख – नयन, लोचन।

जंगल – विपिन, अरण्य।

घर – आलय, गृह, भवन।

माता – माँ, मातृ, जननी।

नदी – प्रवाहिनी, सरिता, तटिनी।

5. शब्द लिखो:

मृत्यु, अमीर, शाप, छाया, जड़, आशा, हँसी, आरंभ, कृतज्ञ, पास, निर्मल, जवाब, सूक्ष्म, धनी, आकर्षण।

उत्तर: मृत्यु – जन्म।

छाया – काया।

हँसी – क्रन्दन।

पास – नापास।

सूक्ष्म – स्थूल।

अमीर – गरीब।

जड़ – चेतन।

आरंभ – अन्त।

निर्मल – मलिन।

धनी – निर्धनी।

शाप – वरदान।

आशा – निराशा।

कृतज्ञ – कृतघ्न।

जवाब – प्रशन।

आकर्षण – विकर्षण।

6. सन्धि–विच्छेद करो:

देहावसान, उज्वल, रवीन्द्र, सूर्योदय, सदैव, अत्याधिक, जगन्नाथ, तच्चारण, संसार, मनोरथ, आशीर्वाद, दुस्साहस, नीरस।

उत्तर: देहावसान = देह + अवसान।

उज्वल = उत् + ज्वल।

सूर्योदय = सूर्य + उदय।

अत्यधिक = अति + अधिक।

उच्चारण = उत् + चारणा।

मनोरथ = मनः + रथ।

दुस्साहसे = दुः + साहस।

रबीन्द्र = रवि + ईन्द्र।

सदैव = सदा + एव।

जगन्नाथ = जगत् + नाथ।

संसार = सम + सार।

आशीर्वाद = आशी + वाद। 

नीरस = नी + रस।

योग्यता विस्तार:

1. रवीन्द्रनाथ ठाकुर जी द्वारा रचित किसी अन्य निबंध अथवा कहानी का संग्रह करके पढ़ो और उसका सार अपने सहपाठियों को बताओ?

उत्तर: खोद करो।

2. जहा न पहुँचे रवि वहाँ पहुँचे कवि– इस कहावत पर ध्यान रखते हुए कवि सामर्थ पर कक्षा में चर्चा करो?

उत्तर: खोद करो।

3. “सड़क की बात” की तरह ही ‘पत्थर की बात’ शीर्षक के अन्तर्गत पत्थर की आत्मकथा लिखो?

उत्तर: खोद करो।

4. नोबेल पुरस्कार’ और ‘शान्तिनिकेतन’ के बारे में जानकारी एकत्र करो?

उत्तर: खोद करो।

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