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SEBA Class 10 Hindi MIL Chapter 4 तोड़ती पत्थर
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तोड़ती पत्थर
अम्यास-माला
काव्य खंड |
बोध एवं विचार
1. सही विकल्प का चयन कीजिए।
(क) कवि ने पत्थर तोड़ने वाली को देखा था-
(i) इलाहाबाद के पथ पर।
(ii) बनारस के पथ पर।
(iii) ऊँची पहाड़ी पर।
(iv) छायादार पेड़ के नीचे।
उत्तर: (i) इलाहाबाद के पथ पर।
(ख) स्त्री पत्थर किस समय तोड़ रही थी-
(i) सुबह।
(ii) शाम।
(iii) दोपहर।
(iv) रात।
उत्तर: (iii) दोपहर।
2. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर पूर्ण वाक्य में दीजिए:
(क) पत्थर तोड़नेवाली स्त्री का परिचय कवि ने किस तरह दिया है?
उत्तरः कवि ने कहा है वह पत्थर तोड़ने वाली स्त्री का रंग सांवला तथा गठीला शरीर है तथा वह अभी नवयुवती है।
(ख) पत्थर तोड़नेवाली स्त्री कहाँ बैठकर काम कर रही थी और वहाँ किस चीज की कमी थी?
उत्तरः पत्थर तोड़नेवाली स्त्री इलाहाबाद के एक रास्ते के पास बैठकर पत्थर तोड़ रही थी वहाँ बहुमंजिला इमारत की चारदीवारी थी पर कोई वृक्ष नहीं थी जहाँ वह बैठ कर थोड़ा आराम कर सकती।
(ग) कवि को अपनी ओर देखते हुए देखकर स्त्री सामने खड़े भवन की ओर क्यों देखने लगी?
उत्तरः कवि को अपनी ओर देखते हुए देखकर स्त्री सामने खड़े भवन की ओर इसलिए देखने लगी क्योंकि उससे क्रम भंग हो गया था।
(घ) ‘छिन्नतार’ शब्द का क्या अर्थ है?
उत्तरः ‘छिन्नतार’ शब्द का अर्थ क्रम का टूटना होता है।
(ङ) ‘तोड़ती पत्थर’ कविता का प्रतिपाद्य लिखिए।
उत्तर: ‘तोड़ती पत्थर’ कविता के द्वारा कवि ने श्रमिक वर्ण के हालात तथा दुर्दसा के बारे में बताया है। जो दूसरों के लिए बहुमंजिला इमारत बनाते हैं, लेकिन स्वयं के पास रहने के लिए कोई जगह नहीं है।
3. निम्नलिखित पंक्तियों का भाव स्पष्ट कीजिए:
(क) श्याम तन, भर बँधा यौवन
तन नयन, प्रिय – कर्म – रत मन,
उत्तरः निराला जी अपनी इस कविता में प्रकृति का चित्रण जिस मनोभाव से करते हैं, वह सहज अनुगम्य अथवा सामान्य नहीं है। वे प्रकृति को उसकी विकारता और भयावहता के साथ चित्रित करते है। यह चित्रण भावबोधक के भीतर के तंत्र को झिंझोड़ कर रख देता है। संवेदन, मानों दाँत के दर्द के बीच कनकना पानी घाट लिया हो। यह परिस्थिति का दवाब है जिसे एक स्त्री बराबर दुःखसंत्रास झेलते हुए भी अपने धैर्य को पूर्ण करने में तुलि है। उसका शरीर साँवले रंग का था तथा वह गठीले शरीर वाली युवती थी। जिसके नयन झुके तो हो पर कार्य में पुरे तल्लीन है।
(ख) सजा सहज सितार,
सुनी मैंने वह नहीं जो थी सुनी झंकार,
उत्तरः कवि ने उस मजदूरन के साथ अपने अपको को जोड़ा अर्थात उसके दर्द के साथ अपने आप में स्पर्श करने का प्रयास किया है तथा कहा है जो लोग अपना घर नहीं बना सकते वे लोग दूसरों के लिए घर बनाने के लिए इतनी मेहनत करते हैं। वह एक जंकार को (समझने) सुनने का प्रयास करता है तथा उसे समझता है। वह एक क्षण के लिए काँपती है तथा उसके सौंदर्य से माथे से एक पसीने की बूँद छलकती है। वह उसकी वेदना तथा परिश्रम को समझते हुए वह अंत में कहते हैं ‘मैं तोड़ती पत्थर’ अर्थात वह उसके दर्द को स्वयं में महसूस करते हैं।
S.L No. | CONTENTS |
(GROUP – A) काव्य खंड | |
Chapter – 1 | पद-युग्म |
Chapter – 2 | वन – मार्ग में |
Chapter – 3 | किरणों का खेल |
Chapter – 4 | तोड़ती पत्थर |
Chapter – 5 | यह दंतुरित मुसकान |
Chapter – 6 | ऐ मेरे वतन के लोगो |
Chapter – 7 | लोहे का स्वाद |
गद्य खंड | |
Chapter – 8 | आत्म निर्भरता |
Chapter – 9 | नमक का दारोगा |
Chapter – 10 | अफसर |
Chapter – 11 | न्याय |
Chapter – 12 | वन-भ्रमण |
Chapter – 13 | तीर्थ-यात्रा |
Chapter – 14 | इंटरनेट की खट्टे-मीठे अनुभव |
(GROUP – B) काव्य खंड | |
Chapter – 15 | बरगीत |
Chapter – 16 | कदम मिलाकर चलना होगा |
गद्य खंड | |
Chapter – 17 | अमीर खुसरु की भारत भक्ति |
Chapter – 18 | अरुणिमा सिन्हा: साहस की मिसाल |
भाषा एवं व्याकरण
1.
तत्सम | तद्भव (हिन्दी) |
आम्र | आम |
ग्राम | गाँव |
शलाका | सलाई |
चंचु | चोच |
घोटक | घाड़ा |
शत | सौ |
कर्ण | कान |
हरिद्रा | हलदी, हरदी |
प्रस्तुत कविता में भी कई तत्सम शब्दों का प्रयोग हुआ है। उन्हें ढँढ़कर उनका तद्भव रूप लिखिए।
उत्तरः
तत्सम | तद्भव |
प्रहार | मारना |
तरु | पेड़ |
अट्टालिका | बहुमंजिला इमारत |
प्राकार | परकोटा |
प्राय: | हमेशा |
दृष्टि | नजर |
क्षण | पल |
ज्यों | जैसे |
सीकर | पसीना |
कर्म | काम |
2. हिन्दी में अनेक ऐसे शब्द हैं जिनका लिंग, वचन, पुरुष अथवा कारक के कारण रूप परिवर्तन नहीं होता। इन शब्दों को अव्यय या अविकारी शब्द कहते हैं। इसके अंतर्गत क्रिया-विशेषण, समुच्चयबोधक, संबंधबोधक और विस्मयादिबोधक आते हैं। पठित कविता में प्रयुक्त निम्नलिखित अव्ययों से एक-एक वाक्य बनाइएः
बार-बार, सामने, भर, ओर, तले, फिर
उत्तर: बार-बार: तुम बार-बार एक ही गलती क्यों कर रहे हो?
सामने: सुनार की दुकान सामने ही है।
भर: सीता कुएँ से पानी भर रही है।
ओर: हवा पूर्व की ओर चल रही है।
तले: बारिश के पानी की मिट्टी गिलास के तले में बैठ गई है।
फिर: फिर से बारिश शुरू हो गई।
3. ‘विशेषण’ का काम संज्ञा या सर्वनाम की विशेषता बतलाना है, जबकि जिस संज्ञा या सर्वनाम की विशेषता बतलाई जाए, उसे ‘विशेष्य’ कहते हैं। जैसे- ‘सुंदर कलम’ में ‘सुंदर’ विशेषण है और ‘कमल’ विशेष्य। पाठ में आए निम्नलिखित शब्दों से विशेष्य-विशेषण को अलग कीजिए:
शब्द | विशेष्य | विशेषण |
श्याम तन | ||
तन नयन | ||
गुरु हथौड़ | ||
सहज सितार |
उत्तर:
शब्द | विशेष्य | विशेषण |
श्याम तन | तन | श्याम |
तन नयन | नयन | नत |
गुरु हथौड़ | हथौड़ा | गुफ (बड़ा) |
सहज सितार | सितार | सहज |
अतिरिक्त प्रश्नोत्तर
1. लघु उत्तरीय प्रश्नों के उत्तर दीजिए:
(क) निराला जी ने किस किस पत्रिकाओं का संपादन किया?
उत्तरः समन्वय, मतवाला और माधुरी।
(ख) निराला जी किस युग के प्रतिनिधि कवि थे?
उत्तरः छायावाद युग के।
(ग) चाबूक किसके द्वारा रचित निबंध है?
उत्तरः सूर्यकांत त्रिपाठी (निराला) द्वारा।
(घ) निराला जी का देहावसान कब हुआ?
उत्तरः सन 1961 में।
(ङ) तपती धूप में कौन पत्थर तोड़ रही थी?
उत्तरः एक स्त्री।
(च) स्त्री के नयन कैसे थे?
उत्तरः नयन नत थे।
(छ) तरु-मालिका का क्या अर्थ है?
उत्तरः पेड़ों की पंक्ति।
(ज) कर्म में लिन रहने के समय स्त्री ने क्या कहा?
उत्तर: ‘मैं तोड़ती पत्थर’।
(झ) ‘सीकर ‘का मतलव क्या है?
उत्तरः पसीना।
(ञ) ‘निराला’ जी के दो उपन्यासों के नाम लिखो।
उत्तरः अलका, निरुपमा।
2. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए:
(क) ‘गुरु हथौड़ा हाथ ………………… प्राकार’ का भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तरः उसे अपने होने और अपने द्वारा किए जाने वाले कर्म का पूर्ण भान है। वह अन्याय के विरुद्ध विरुदावली नहीं गाती है। वह दीर्घकालिक योजना को कार्यरूप में परिणत होते देखना चाहती है। कवि ने गुरु हथौड़ा कह शक्ति की केन्द्रीकृत सर्जना एवं उसकी अभिव्यंजना बड़े व्यापक और उच्चतर मनोभाव के साथ की है।
(ख) निराला जी के रचनाओ को रेखाकिंत कीजिए।
उत्तरः सूर्यकांत त्रिपाठी निराला हिन्दी काव्य जगत में सचमूच बिरालें व्यक्तित्व के यथानाम महाकवि थे। उनके प्रमुख रचनाएँ इस प्रकार हैं- काव्य संग्रह-अनामिका, परिमल, गीतिका, तुलसीदास, कुकुरमुत्ता, अनिमा, नए पत्ते, बेला, अर्चना, आराधना, गीतगुंज, सांध्यकाकली।
उपन्यास: अप्सरा, अलका, निरुपमा, प्रभावती, काले कारनामे, चोटी की पकड़।
कहानी: लिली, सखी, सुकुल की वीबी, देवी।
रेखाचित्र: कुल्लीभाट, बिल्लेसुर बकरिहा, चतुरी चमार निबंध और आलोचना- प्रबंध पद्म, प्रबंध प्रतिमा, चाबुक।
जीवनी: भक्त ध्रुव, भक्त प्रहलाद, भीष्म, महाराणा प्रताप आदि।
(ग) श्याम तन, भर बंधा यौवन…………….. प्रिय कर्मरत म-न- व्याख्या कीजिए।
उत्तरः प्रसंग: उक्त पद्यांश हमारे पाठ्यपुस्तक आलोक भाग-२ के अंतर्गत निराला जी द्वारा रचित तोड़ती पत्थर से लिया गया है।
व्याख्या: निराला जी की दृष्टि में जब संवेदना-संघात का तीब्र संपोषण होता है, तो संप्रेषणविदान के अंतर्गत चयनिट शब्द नए भावभंगिमा, अर्थच्छाया और रूप से तदाकर करन जीवन लगते हैं। उन्हें वह स्त्री अपनी उम्र और काया के हिसाब से न सिर्फ संपूर्णतों लिए दिखती है, बल्की उन्हें उसका हृदय निर्मल, निष्कलुष और बिल्कुल ही निद्रबदन दिखाई देता है। यह सच्चाई है कि सौन्दर्यात्मक आभाप्रकाशित हो रही हैं। कांति उसके शरीर से आभासित, लेकिन कवि उसके सौन्दर्यात्मक बोध के अधिक देख रहा होता है जिसे कार्य में उसने बोझ बोध का भार-ऊपर श्रम अपना मन मौह, भावना और हृदय सबकुछ रोप दिया है।
(घ) निराला जी के साहित्यिक जीवन पर प्रकाश डालिए।
उत्तरः हिन्दी साहित्य जगत में छायावाद के उन्नायकों में जिन-जिन का नाम उल्लेख किया जाता है ‘निराला’ छायावाद के प्रतिनिधि कवि थे। इनकी भाषा में भावानुरूप कोमलता और पौरुष दोनों का सुन्दर समन्वय है। उनकी भाषा में जहाँ एक ओर संस्कृत की समास प्रधान शब्दावली की प्रचुरता दिखाई पड़ती है, वहीं दूसरी ओर सरल और व्यावहारिक शब्दावली भी परिलक्षित होती है। उन्होंने अपने काव्य में परंपरागत तुकांत छंदों के अतिरिक्त नवीन अनुकांत छंद का भी प्रयोग किया था और ऐसा करके हिन्दी काव्य जगत में वे एक परिवर्तन लाए थे। परंतु अन्य विधाएँ भी उनसे अछूती नहीं रही। उन्होंने निबंध, कहानी, उपन्यास की भी रचना की थी। समन्वय के अतिरिक्त मतवाला और माधुरी नामक पत्रिकाओं का भी आपने संपादन किया था। उनकी तरह विलक्षण क्रांतिकारी ‘वज्रादपि कठोर’ किन्तु मृदुनि कुसुमादपि’ साहित्यकार किसी भाषा के इतिहास में कभी-कभी आया करता है। वे संगीत, दर्शन-शास्त्र के भी गहरे अध्येता थे।
3. सप्रसंग व्याख्या कीजिए:
(क) वह तोड़ती…………………….. तोड़ती पत्थर।
उत्तरः प्रसंग: प्रस्तुत पद्यांश हमारी हिंदी की पाठ्य पुस्तक ‘अंबर भाग-२’ से पाठ तोड़ती पत्थर से ली गई है। इस कविता के कवि सूर्यकांत त्रिपाथी निराला जी है।
व्याख्या: हम पंक्तियों में ‘सूर्यकांत त्रिपाठी’ निराला जी ने श्रमिक के कठोर जीवन के बारे में बताया है कि वह पत्थर तोड़ती है जब वे इलाहावाद के पथ पर थे उन्होंने श्रमिक को पत्थर तोड़ते देखा।
(ख) कोई न ….…………. अट्टालिका प्रचार।
उत्तर: प्रसंग: प्रस्तुत पद्यांश हमारी हिंदी की पाठ्य पुस्तक ‘अंबर भाग-2’ से पाठ तोड़ती पत्थर से ली गई है। इस कविता के कवि सूर्यकांत त्रिपाथी निराला जी है।
व्याख्या: जहाँ पर वह पत्थर तोड़ रही थी उसके आस-पास कोई पेड़ नहीं था जहाँ पर वह बैठ कर थोड़ी छाया में आराम कर सकती। उसका शरीर साँवले रंग का था तथा वह गठीले शरीर वाली युवती थी। जिसके नयन झुके हुए थे तथा पूरी तरह से अपने काम में तल्लीन थी। उसके हाथ में एक बड़ा हथौड़ा था तथा वह पत्थरों पर बार-बार प्रहार कर रही थी। उसके सामने पेड़ों की पंक्ति थी और बहुमंजिला मकान की चारदीवारी थी।
(ग) चढ़ रही थी ……………… हुई दुपहर।
उत्तरः प्रसंग: प्रस्तुत पद्यांश हमारी हिंदी की पाठ्य पुस्तक ‘अंबर भाग-२’ से पाठ तोड़ती पत्थर से ली गई है। इस कविता के कवि सूर्यकांत त्रिपाथी निराला जी है।
व्याख्या: गर्मियों के दिन थे तथा धूप अपनी चरम सीमा पर थी। दिन का झुलसाने वाले गर्मी में लू चल रही थी। आग सा गोला बनी हुई धरती पर लू चलने से धूल की चिंगारी सी छाई हुई थी। पर वह इस झुलसा देने वाली दोपहर में भी पत्थर तोड़ रही थी।
(घ) देखते देखा ……………….. रोई नहीं।
उत्तर: प्रसंग: प्रस्तुत पद्यांश हमारी हिंदी की पाठ्य पुस्तक ‘अंबर भाग-२’ से पाठ तोड़ती पत्थर से ली गई है। इस कविता के कवि सूर्यकांत त्रिपाथी निराला जी है।
वाख्या: कवि ने उस मजदूरन नायिका से एकाकार हो गया। उसने कवि को अपनी तरफ देखते देखा और एक पल के लिए क्रम भंग किया। फिर दोबारा वह अपने कार्य में लग गई तथा मार खा कर भी रोई नहीं।
(ङ) सहज ……………… मैं तोड़ती पत्थर।
उत्तरः प्रसंग: प्रस्तुत पद्यांश हमारी हिंदी की पाठ्य पुस्तक ‘अंबर भाग-२’ से पाठ तोड़ती पत्थर से ली गई है। इस कविता के कवि सूर्यकांत त्रिपाथी निराला जी है।
व्याख्या: कवि ने उस मजदूरन के साथ अपने अपको को जोड़ा अर्थात उसके दर्द के साथ अपने आप में स्पर्श करने का प्रयास किया है तथा कहा है जो लोग अपना घर नहीं बना सकते वे लोग दूसरों के लिए घर बनाने के लिए इतनी मेहनत करते हैं। वह एक जंकार को (समझने) सुनने का प्रयास करता है तथा उसे समझता है। वह एक क्षण के लिए काँपती है तथा उसके सौंदर्य से माथे से एक पसीने की बूँद छलकती है। वह उसकी वेदना तथा परिश्रम को समझते हुए वह अंत में कहते हैं ‘मैं तोड़ती पत्थर’ अर्थात वह उसके दर्द को स्वयं में महसूस करते हैं।
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