SEBA Class 10 Hindi Chapter 7 साखी

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SEBA Class 10 Hindi Chapter 7 साखी

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साखी

पद्यांश

अभ्यासमाলা

बोध एवं विचार:

1. सही विकल्प का चयन करो:

(क) महात्मा कबीरदास का जन्म हुआ था?

(अ) सन् 1398 में।

(आ) सन् 1380 में।

(इ) सन् 1370 में।

(ई) सन् 1390 में। 

उत्तर: सन् 1398 में।

(ख) संत कबीर दास के गुरु कौन थे?

(अ) गोरखनाथ।

(आ) रामानन्द।

(इ) रामानुजाचार्य।

(ई) ज्ञानदेव।

उतर: रामानन्द।

(ग) कस्तुरी मृग वन वन में क्या खोजता फिरता है?

(अ) कोमल घास।

(आ) शीतल जल।

(इ) कस्तूरी नामक सुगंधित पदार्थ।

(ई) निर्मल हवा।

उत्तर: कस्तूरी नामक सुगंधित पदार्थ।

(घ) कबीर दास के अनुसार वह व्यक्ति पंडित है?

(अ) जो शास्त्रोका अध्ययन करता है।

(आ) जो बड़े बड़े ग्रंथ लिखता है।

(इ) जो किताबे खरीदकर पुस्तकालय मे रखता है।

(ई) जो ‘प्रेम का ढाई आखर’ पढ़ता है।

उत्तर: जो ‘प्रेम का ढाई आखर’ पढ़ता है।

(ङ) कवि के अनुसार हमें कल का काम कब करना चाहिए।

(अ) आज।

(आ) कल।

(इ) परचो।

(ई) नरसों।

उत्तर: आज।

S.L. No.CONTENTS
गद्यांश
पाठ – 1नींव की ईंट
पाठ – 2छोटा जादूगर
पाठ – 3नीलकंठ
पाठ – 4भोलाराम का जीव
पाठ – 5सड़क की बात
पाठ – 6चिट्ठियों की अनूठी दुनिया
पद्यांश
पाठ – 7साखी
पाठ – 8पद–त्रय
पाठ – 9जो बीत गयी
पाठ – 10कलम और तलवार
पाठ – 11कायर मत बन
पाठ – 12मृत्तिका
रचना

2. एक शब्द उतर दो:

(क) श्रीमंत शंकर देव ने अपने किस ग्रंथ में कबीर दास जी का उल्लेख किया है?

उत्तर: कीर्तन घोसा में।

(ख) महात्मा कबीर दास का देहावसान कब हुआ था? 

उत्तर: मगहर में।

(ग) कवि के अनुसार प्रमविहीन शरीर कैसा होता है?

उतर: लोहार की खाल जैसा होता है।

(घ) कबीर दास जी ने गुरु को क्या कहा?

उत्तर: कुहार कहा है।

(ङ) महात्मा कबीर दास की रचनाएँ किस नाम से प्रसिद्ध हुई? 

उत्तर: बीजक नाम से।

3. पूर्ण वाक्य में उत्तर दो:

(क) कबीरदास के पालक पिता–माता कौन थे?

उत्तर: कबीर दासके पालक पिता–माता नीरू और नीमा था।

(ख) ‘कबीर’ शब्द का अर्थ क्या है?

उतर: कबीर शब्द का अर्थ बड़ा, महान और श्रैष्ठ है।

(ग) ‘साखी’ शब्द किस संस्कृत शब्द से विकसित है?

उत्तर: ‘साखी’ शब्द संस्कृत शब्द ‘साक्षी’ से विकसित है।

(घ) साधु की कौन–सी बात नही पुछी जानी चाहिए?

उत्तरः साधु को ‘जाति के बारे में पूछना नही चाहिए।

(ङ) डुबने से डरने वाला व्यक्ति कहाँ बैठा रहता है? 

उत्तर: डुवने से डरनेवाला व्यक्ति पानी के किनारे बैठा रहता है।

4. अति संक्षिप्त उत्तर दो:

(क) कबीरदास जी की कविताओं की लोकप्रियता पर प्रकाश डालो?

उत्तर: कंबीर दास की कविताओं में भक्तिभाव, व्यवहारिक ज्ञान और जो मानवतावादी दृष्टि है आम जनता की सरल सुवोध भाषा में लिखा हुआ है। उनकी कविताओं की वाणी आज भी प्रासंगिक है। इसलिए लोग उसे ग्रहण करते आए है।

(ख) कबीर दास जी के आराध्य कैसे थे?

उत्तर: कवीर दास निर्गुण निराकार ‘राम’ के उपासक थे। यह आराध्य राम संसार के रोम–रोम में है; प्रत्येक अणु–परमाणु में वसनेवाले है। सच्चे हृदय से उसे पाया जा सकता है।

(ग) कबीर दास जी का काव्य भाषा किन गुणों से युक्त है?

उत्तर: कबीर दास जी की काव्य भाषा वस्तुतः तत्कालीन हिंदुस्तानी है, जिसे विद्वानों ने ‘सधुक्कड़ी’ ‘पंचमेल खिचड़ीं, आदि कहते है। यह भाषा सरल, सहज, बोधगम्य और स्वाभाविक रूप से आये अलंकारों से सजी हुई है। इसमें ब्रज, फारसी, उर्दू, पंजावी आदि भाषा का समावेश हुआ है।

(घ) ‘तेरा साई तुझ मे, ज्यों पुहुपन में बास’ का आशय क्या है?

उत्तरः कबीर दास के मतानुसार भगवान सब जीवों के हृदय में है। जिस प्रकार फूलों में बास छिपा रहता है उसी प्रकार भगवान संसार के सभी चीजो में छिपा रहता है।

(ङ) ‘सत गुरु’ की महिमा के बारे में कवि ने क्या कहा है?

उत्तर: कबीर दास ने सतगुरु की महिमा को अनन्त कहाँ है। क्योकि सतगुरु का लोचन अनन्त हैं, दिखावणहारभी अनन्त है जिसने ईश्वर के साक्षात दर्शन करवा दिए है।

(च) ‘अतर हाथ सहार दे, बाहर बाहै चोट –क तात्पर्य बताओ? 

उत्तर: कबीर दास के अनुसार गुरु–शिष्य का संबंध कुम्हार और कुंभ का सा है। जिस प्रकार कुम्हार कुंभ बनाते समय एक हाथ से सहारा देता है और दुसरे हाथ से बाहर चोट लगाता है उसी प्रकार गुरु ने शिष्य को सही शिक्षा देने में कभी कभी कोसते है पर हमेशा हृदय में प्यार रखता है।

5. संक्षिप्त उत्तर दो:

(क) बुड़ाई खोजने के संदर्भ में कवि ने क्या कहा है?

उत्तर: ‘बुड़ाइ खोजने के संदर्भ में कबीर दास ने यह कहना चाहता कि हमे दुसरो की भलाई–बुराई को देखने से पहले अपने आपको अच्छी तरह निरीक्षण करना चाहिए। कबीर दास के अनुसार लोग दूसरो की बुराई हमेशा देखते है लेकिन अपनी मन की मैली को नहीं देखते। जब उसने अपने दिल को खाखो तो मालुम हुआ कि उन के जैसे बुरे कही भी नही है।

(ख) कबीर दास जी ने किसलिए मन का मनका फेरने का उपदेश दिया है?

उत्तर: कबीर दास जी के मतानुसार अनेक लोग भगवान के नाम पर हाथ में माला लेकर जप करते है किन्तु भगवान का साक्षात या दर्शन नही पाते। आपके अनुसार माला जपने से पहले अपने मन का फेर मारना चाहिए अर्थात् मन की मैली को साफ करनी चाहिए।

(ग) गुरु शिष्य को किस प्रकार गढ़ते है?

उत्तर: जिस प्रकार कुम्हार कुंभ को बनाने में आंदर में से एक हाथ से सहारा देता है और बाहर से थपकिया लगाते है उसी प्रकार गुरु ने भी शिष्य को हृदय में प्यार रखते हुए कोसने पीटने के जरिए शिक्षा देकर शिष्य को गढ़ लेते है।

(घ) कोरे पुस्तकीव ज्ञान की निरर्थकता पर कबीरदास जी ने किस प्रकार प्रकाश डाला है?

उत्तर: कबीर दास के अनुसार पुस्तकीय ज्ञान के जरिए कोई लोग पंण्डित नहीं बन सकता। पण्डित वनने के लिए लोगों को प्रेम के बारे में जानना जरुरी है। जो लोग प्रेम के ढाई प्रकार का ज्ञान जानते हो वे भी पण्डित बन सकते है।

6. सम्यक् उत्तर दो:

(क) संत कबीर दास की जीवन–गाथा पर प्रकाश डालो?

उत्तर: हिन्दी के संत तथा राम भक्ति शाखाओं के प्रमुख कविओ में कबीरदास जी अन्यतम है। आपकी भक्ति–काव्यों की तरह जीवन–गाथा भी अत्यंत रोचक है। सन १३९८ (1398) में काशी में एक विधवा ब्राह्मणी के गर्भ से आपका जन्म हुआ था। लोकलाज के कारण इस दिव्य बच्चे को लहरतारा नामक स्थान के एक तालाब के तट पर छोड़ दिया था। वहाँ से गुजरते हुए नीरु और नीमा नामक मुसलमान जुलाहे दंपति को वह बालक मिला। उन्होने उसका नाम रखा कबीर और उसे पाल–पोसकर बड़ा किया। आगे चलकर कबीरदास जी बड़े संत, श्रेष्ठ भक्त और महान कवि बने ।

कबीर दास स्वामी रामानन्द के शिष्य थे। वे निर्गुण निराकार ‘राम की आराधना करते थे। आप जात–पात, उद्य–निम्र आदि भेद–भावों के हमेसा विरोधी थे।

(ख) भक्त कवि कबीर दास जी का साहित्यिक परिचव दो?

उत्तर: कोबर दास आम जनता के कबि थे। उन्होने जनता के लिए और जनता की सहज, सरल और सुबोध भाषा में काव्य की रचना की। भक्ति धर्म आदि प्रचार–और प्रसार के लिए आप जहाँ तहा धुमते थे और वहाँ की जनभाषा से कविता लिखते थे। आपकी कविता में ब्रज, मैथिली, उर्दु पारसी–फारसी, आरवी, पंजावी, राजस्थानी आदि भाषा के शब्दों का समावेश हुआ है। 

इसलिए कुछ विद्वानों ने उनकी भाषा को “सधुक्कड़ी” “पचमेल खिचड़ी” आदि कहा है। झान, भक्त, आमा–परमात्मा, माया, प्रेम, वैराग्य, आदि गंभीर विषय उनकी रचनाओं में अत्यन्त सुबोध एवं स्पष्ट रूप में प्रकट हुए है।

कबीर दास ने लोगों के वीच में रहकर तरह–तरह के उपदेश आदि दिया करते थे। उनकी वाणियों को कुछ शिष्यों ने लिपिवद्ध किया। उनकी रचनाएँ “बीजक” नाम से प्रसिद्ध है। इसके तीन भाग है–सखी, सबद और रमैनी।

7. सप्रसंग व्याख्या करो:

(क) ‘जाति न पूछो’ साघु की, ……… पड़ा रहन दो म्यान?

उत्तर: यह पंक्तिया हमारी पाठ्य पुस्तक “आलोक भाग-२ के अन्तर्गत महात्मा कबीर दास विरचित “साखी” शीर्षक दोहे से लिया गया है।

इसमें कबीर दास ने हमें जाति नहीं बल्कि ज्ञान पर ही गुरुत्व देने को कहा है।

जाति मनुष्य का बाहरी आवरण मात्र है। समाज की भलाई के लिए हमे ज्ञान का ही जरुरत होता है जाति का नहीं। जिस प्रकार लड़ाई जितने के लिए हमें तलवार की आवश्यकता होती है म्यान का नहीं उसी प्रकार एक सुन्दर समाज वनाने के लिए हमें किसी भी व्यक्ति के ज्ञान पर ही नजर डालना चाहिए जाति से नहीं।

कबीर दास ने जाति–भेद को समाज की बुराई का कारण मानते थे। कवीर दास की इस वाणी में सच्चाई है।

(ख) ‘जिन ढूँढ़ा तीन पाइयाँ, ………. रहा किनारे बैठ?

उत्तर: यह पंक्तिया हमारी पाठ्य पुस्तक आलोक भाग-२ के अन्तर्गत महात्मा कबीर दास विरचित “साखी” शीर्षक दोहे से लिया गया है। इसमे कबीर दास ने गहन साधना और कर्म की आवश्यकता पर हमारे ध्यान खीच लेना चाहता है।

कबीर दास के अनुसार विना साधना और कर्म किसी की सफलता नही मिलता। मनुष्य जीवन की सफलता कड़ी साधना और परिश्रम पर निर्भर है। जिसमें साहस नही वे पानी में डूव जाने की भय से समुद्र के चट परही बैठे रहते है और जो निडर है परिश्रमी है समुद्र के अन्दर तक जाकर मोती निकाल लेते हैं। इससे यह सूचित होता है कि जिन्दगी का मजा हिम्मत और परिश्रम वाले ही ले सकता आलसी तथा डरफोक नहीं। 

(ग) जा घट प्रेैम न संचरै, ……… साँस लेत बिनु प्रान?

उत्तर: यह पंक्तिया हमारी पाठ्य पुस्तक ‘आलोक भाग-२’ के अन्तर्गत महात्मा कबीर दास विरचित “साखी” शीर्षक दोहे से लिया गया है।

इसमें कबीर जी ने हमें प्रेम और भक्ति की महत्ता पर अपना विचार प्रकट किया है।

कबीर दास के अनुसार जिस घर में हरि या भगवान की पूजा नहीं होती वह घर श्मशान के समान है। श्मशान में रहनेवाले को लोग भुत कहते है जिसके पास भगवान के प्रति प्रेम या भक्ति से भरा कोई हृदय नही। दूसरी और उस घर में रहे व्यक्तिओं का शरीर भी प्रानशून्य है, लोहार की खाल जैसी है।

(घ) काल करे सो आज कर, …….. बहुरि करेगी कब?

उत्तरः यह पंक्तिया हमारी पाठ्य पुस्तक आलोक भाग–२ अन्तर्गत महात्मा कबीर दास विरचित “साखी” शीर्षक दोहे से लिया गया है।

इसमे कबीर ने लोगो को शीघ्र कर्तव्य पालन करने के लिए उपदेश दिया है।

कवीर दास के अनुसार इस जगत की कोई सुनिश्चित विधि नहीं है। किसि न किसि परिवर्तन होता जा रहा है। इस प्राकृतिक परिवर्तनों के साथ साथ हमारे जीवन चर्या में भी उथल–पुथल आ जाता है। इसलिए हमें समय का काम समय पर कर लेना जरुरी है। कभी भी किसी प्रकार के काम को करने में अवहेलना करना अनुचित है। अपनी करणीय कर्म को जितनी ही जल्दी हो सके उतनी ही में कर लेनी चाहिए ताकि विपद या आफती का असर हमारे ऊपर कम से कम हो।

कबीर दास की वह वाणी पत्थर की लकीर की तरह हमें हमेशा के लिए याद रखना चाहिए।

भाषा एवं व्याकरण ज्ञान:

1. निम्नलिखित शब्दों के तत्सम रूप बनाओ:

मिरग, पुहुप, सिष, आखर, मसान, परलय, उपकार, तीरथ। 

उत्तर:

मूलशब्दतत्सम शब्द
मिरगमृग
पुहुपपूंष्प
सिषशिस्य
आखरअक्षर
मसानश्मसान
परलयप्रलय
उपगारउपकार
तीरथतीर्थ

2. बाक्यों में प्रयोग करके निम्नलिखित जोड़ो के अर्थ का अंतर स्पष्ट करो:

मनका – मन का।

करका – कर का। 

नलकी – नल की।

पीलिया – पी लिया।

तुम्हारी – तुम हारे।

नदी – न दी। 

मनका (माला के दाने) – हाथ में मनका लेकर फायदा नही उठा सकता अगर दिल साफ न हो।

मन का (अंतर) – माला जपने से पहले मन का फेर मार लेनी चाहिए।

करका (बषी का पत्थर) – श्रावन की महिने में करका अधिक होती है।

कर का (हाथ) – कर का मैली साफ करना आसान है। 

नलकी (पानी खीचा जनेवाली यन्त्र) – नलकी की सहायता से जमीन में से पानी ऊपर खीचा जाता है।

नल की (नल का) – नल की भीतरी भाग खोखला है। 

पीलिया (एक वीमार का नाम) – रमेन पीलिया की दाबट ले रहा है।

पी लिया (पीना कार्य) – उसने पानी पी लिया है। 

तुम्हारे (तुम का) – तुम्हारे पास रुपया है क्या?

तुम हारे (पराजित होना) – तुम हारे या जीते इसमें मेरा कोई मतलव नही।

नदी (नद, तटिनी) – नदी का पानी–पीना नहीं चाहिए। 

न दी (न) – उसने मुझे खाने न दी।

3. निम्रांकित शब्दों के लिंग निर्धारित करो:

महिमा, चोट, लोचन, तलवार, ज्ञान, घट, साँस, प्रेम।

उत्तर: महिमा – स्त्रीलिंग।

तलवार – स्त्रीलिंग।

साँस – स्त्रीलिंग।

चोट – स्त्रीलिंग।

ज्ञान – पूलिंग।

प्रेम – पुलिंग।

लोचन – पूलिंग।

घट – पुंलिंग।

4. निम्नलिखित शब्दों समूहों के लिए एक एक शब्द लिखो:

(क) मिट्टी के वर्तन बनानेवाला व्यक्ति?

उत्तर: कुम्हार।

(ख) जो जल में डूबकी लगाता हो?

उत्तर: पनडूब्वे।

(ग) जो लोहे के औजार बनाता है?

उत्तर: लूहार।

(घ) सोने के गहने बनाने–वाला कारीगर?

उत्तर: सुनार।

(ङ) विविध विषयों के गंभीर ज्ञान रखने वाला व्यक्ति?

उत्तर: पंडित ।

योग्यता विस्तार:

1. महात्मा कबीर दास द्वारा विरचित निम्नलिखित दोहो के आशय जानने का प्रयास करो:

प्रेम न बाड़ी ऊपजै, प्रेम न हाट बिकाय।

राजा परजा जैहि रूचै, सीस दै ले जाय॥

आशय: कबीर दास के अनुसार प्रेम का महत्व अधिक है। प्रेम खेत में उत्पादन होनेवाले चीज नही है या इसे वाजार में भी विका नहीं जा सकता। प्रेम वैसा एक सम्बंध है जो राजा और प्रजा के बीच रहते हैं, प्रेम के कारण एक दूसरों को चाहते है। अपना जीवन त्याग करने को तैयार रहते है।

आये है सो जाएँगे, राज रंक फकीर।

एक सिंहासन चढ़ि चले, एक बंधे जंजीर। 

आशय: राजा, रंक और फकीरों में से किसी को सिंहासन पर चढ़ाई करने का वक्त जिस प्रकार मिलता है उसी प्रकार किसी को कड़ियों की लड़ी लेनी पड़ती है। 

चारि भुजा के भजन में भूलि परे सब संत।

कबिरा सुमिरै तासु को, जाके भूजा अनंत।

आशय: इसका मतलव है कि चारभूजा वाले बिष्णु के भजन में सभी सन्तो अपने की भूल जाते है। लेकिन कबीर दास उसविष्णु का उपासक नहीं है। वे अनन्त भूजावाले निर्गुण ब्रह्म का स्मरण करते है ।

2. कबीर दास जी द्वारा विरचित प्रसिद्ध साखियों का संग्रह करके अपने सहपाठियों के बीच अंत्याक्षरी का खेल खेलो?

उत्तर: खोद करो।

3. संत कबीर दास विरचित शाखियों में निहित संदेशों की प्रासंगिकता पर अपने मित्रों के वीच चर्चा करो?

उत्तर: खोद करो।

4. कबीर दास जी की ‘सघुक्कड़ी भाषा के बारे में अधिक जानकारी प्राप्त करो?

 उत्तर: खोद करो।

5. जीवन, कर्म और भक्ति भावना की दृष्टि से संत कबीर दास और श्रीमंत शंकर देव की तुलना करने का प्रयास करो?

उत्तर: खोद करो।

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