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Class 11 Hindi MIL Chapter 21 भारतीय गायिकाओं में बेजोड़ – लता मंगेशकर
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भारतीय गायिकाओं में बेजोड़ – लता मंगेशकर
आरोह: काव्य खंड |
प्रश्नोत्तर:
1. लेखक ने पाठ में गानपन क उल्लेख किया ह। पाठ के सदंर्भ में स्पष्ट करने हुए बताएँ कि आपके विचार में इसे प्राप्त करने के लिए किस प्रकार के अभ्यास की आवश्यकता है?
उत्तर: लेखक ने गानपन का उल्लेख करते हुए कहा है, जिसप्रकार मनुष्य के लिए मनुष्यता का होना आवश्यक है, उसी प्रकार गाना में गानपन का होना अति आवश्यक है। यह गानपन ही गाने को सजीव बनाता है।
गाने में गानपन शास्त्रीय बैठक के पक्केपन की वजह से ताल सुर के निर्दोष ज्ञान के कारण नहीं आती है। बल्कि गाने की मिठास, उसकी सारी ताकत गानपन में अवलंबित रहती है। गाने को रसिक वर्ग के समक्ष कैसे पहुँचायाँ जाए, किस ढंग से प्रस्तुत किया जाए और श्रोताओं में कैसे सुसंवाद साधा जाए यह सभी बाते गानपन में समाविष्ट है। अतः गानपन के लिए इन सभी बातों के अभ्यास की आवश्यकता हैं।
2. लेखक ने लता की गायकी की किन विशेषताओं को उजागर किया है। आपको लता की गायकी में कौन-सी विशेषताएँ नज़र आती है। उदाहरण सहित बताइए।
उत्तर: लेखक ने लता की गायकी की बहुत सारी विशेषताओं का उल्लेख किया है, जिनमें स्वरों निर्मलता, मुग्धता और कोमलता तथा उनका नादमय उच्चार है।
मेरे अनुसार लता की गायकी की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं-
(1) लता के गाने में एक चुम्बकीय शक्ति है, जो हर श्रोता को अपनी ओर आकर्षित कर लेती है। उनके कोई भी गाना अगर हम ले उदाहरणस्वरूप- यारा सीली सीली, ये कहाँ आ गएँ हम आदि सुनने पर एक खिंचाव सा अनुभव होता है।
(2) लताजी के गाने में कोमलता और मधुरता हैं। उनके गाने में इतनी कोमलता और मधुरता है कि उसकी तुलना हम कोकिला से कर सकते हैं। वर्षों पहले जो कोमलता और मधुरता उनके गाने में मौजूद थी वहीं बात आज भी उनके गाने में देखने को मिलती है।
(3) लता जी के गाने में स्वरों की निर्मलता पाई जाती है। लताजी हमेशा सादा जीवन की पक्षपाती रही है। जीवन के प्रति जो दृष्टिकोण उनका रहा है, वहीं दृष्टिकोण गायन की तरफ भी पाया जाता है।
(4) लताजी के गाने की एक और विशेषता है, उसका नादमय उच्चार। उनके गीतों में दो शब्दों का अंतर स्वरों के आलाप द्वारा बड़ी सुंदर ढंग से प्रस्तुत रहता है। दोनों शब्द विलीन होते होते एक दूसरे में मिल जाते हैं।
3. लता ने करुण रस के गानों के साथ न्याय नहीं किया हैं, जबकि शृंगारपरक गाने बड़ी उत्कटता से गाती हैं। – इस कथन से आप कहाँ तक सहमत हैं।
उत्तर: मैं इस कथन से सहमत नहीं हुँ। मुझे लगता है, कि लता ने करुण रस के गानों के साथ भी उतना ही न्याय किया है, जितना श्रृंगारपरक गानों के साथ। उनके करुण रस वाले गाने उतने ही मनमोहक तथा मधुर लगते हैं, जितने श्रृंगारपरक गाने।
4. संगीत का क्षेत्र ही विस्तीर्ण हैं। वहाँ अब तक अलाक्षित, असंशोधित और अट्टाष्टिपूर्व ऐसा खूब बड़ा प्रांत है तथापि बड़े जोश से इसकी खोज और उपयोग चित्रपट के लोग करते चले आ रहे हैं- इस कथन को वर्तमान फिल्मी संगीत के संदर्भ में स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: लेखक कहते हैं कि संगीत का क्षेत्र बड़ा ही विस्तीर्ण है। और उस क्षेत्र में आज भी ऐसे बहुत सारा क्षेत्र है, जो अलक्षित, असंशोधित और अट्टाष्टिपूर्व है। और चित्रपट के लोग इन सभी क्षेत्रों का उपयोग और इसकी खोज बड़े जोश से कर रहे हैं। चित्रपट संगीत दिग्दर्शकों ने शास्त्रीय रागदारी का जहाँ चित्रपट संगीत में प्रयोग किया है, वहीं लोकगीतों को भी अपनी संगीत में समाहीत किया है। वर्तमान फ़िल्मी संगीत में कई जगहों के लोकगीतों को समाहित किया गया है। यहाँ तक की धूप का कौतुक करने वाले पंजाबी लोकगीत, रूक्ष और निर्जल राजस्थान में पर्जन्य की याद दिलाने वाले गीत, कृषि गीत, पहाड़ी गीत, ऋतुचक्र समझाने वाले गीतों का उपयोग फ़िलमी संगीत में किया जा रहा है।
S.L No. | CONTENTS |
गद्य खंड | |
Chapter – 1 | नमक का दारोगा |
Chapter – 2 | मियाँ नसीरुद्दीन |
Chapter – 3 | अपू के साथ ढाई साल |
Chapter – 4 | विदाई-संभाषण |
Chapter – 5 | गलता लोहा |
Chapter – 6 | स्पीति में बारिस |
Chapter – 7 | रजनी |
Chapter – 8 | जामुन का पेड़ |
Chapter – 9 | भारत – माता |
Chapter – 10 | आत्मा का ताप |
काव्य खंड | |
Chapter – 11 | हम तौ एक एक करि जाना |
Chapter – 12 | मेरे तो गिरधर गोपाल, दूसरो न कोई |
Chapter – 13 | पथिक |
Chapter – 14 | वे आँखें |
Chapter – 15 | घर की याद |
Chapter – 16 | चंपा काले काले अच्छर नहीं चीन्हती |
Chapter – 17 | गज़ल |
Chapter – 18 | हे भूख मत मचल हे मेरे जूही के फूल जैसे ईश्वर |
Chapter – 19 | सबसे खतरनाक |
Chapter – 20 | आओ, मिलकर बचाएँ |
वितान | |
Chapter – 21 | भारतीय गायिकाओं में बेजोड़ – लता मंगेशकर |
Chapter – 22 | राजस्थान की रजत बूँदें |
Chapter – 23 | आलो-आंधारि |
5. चित्रपट संगीत ने लोगों के कान बिगाड़ दिए अक्सर यह आरोप लगाया जाता रहा हैं। इस संदर्भ में कुमार गंधर्व की राय और अपनी राय लिखें।
उत्तर: शास्त्रीय संगीतवाले अक्सर यह आरोप लगाते हैं. कि चित्रपट संगीत ने लोगों के कान बिगाड़ दिए हैं। इस पर कुमार गंधर्व कहते हैं कि यह आरोप निराधार हैं। क्योंकि लेखक के अनुसार चित्रपट संगीत ने लोगों के कान बिगाड़े नहीं है, बल्कि सुधार दिए हैं। चित्रपट संगीत के कारण लोगों की रुचि अभिजात्य संगीत की ओर बढ़ी हैं।
मेरे अनुसार भी चित्रपट संगीत के कारण लोगों की रुचि संगीत की तरफ बढ़ी हैं। लोगों की चिकित्सक और चौकस वृत्ति अब बढ़ती जा रही हैं। अब लोगों को सुरीला गाना चाहिए न की शास्त्र शुद्ध और नीरस गाना।
6. शास्त्रीय एवं चित्रपट दोनों तरह के संगीतों के महत्व का आधार क्या होना चाहिए? कुमार गंधर्व की इस संबंध में क्या राय हैं? स्वयं आप क्या सोचते हैं?
उत्तर: कुमार गंधर्व के अनुसार शास्त्रीय एवं चित्रपट दोनों तरह के संगीतों के महत्व का आधार इस बात पर ठहरता है कि वे रासिक या श्रोता को कितना आनन्द प्रदान करते हैं। अर्थात दोनों प्रकार के संगीत के लिए यह आवश्यक हैं कि वह श्रोता का आनन्द दे।
मेरे विचार में भी यह बात बिल्कुल आवश्यक हैं।
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