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Class 12 Hindi MIL Chapter 4 सहर्ष स्वीकारा है
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सहर्ष स्वीकारा है
आरोह: काव्य खंड |
प्रश्नोत्तर:
1. टिप्पणी कीजिए:
गरबीली गरीबी, भीतर की सरिता, बहलाती सहलाती आत्मीयता, ममता के बादल।
उत्तर: 1. गरबीली गरीबी: कवि ने गरीबी को गरबीली कहा है क्योंकि वह सदैव उनके साथ चलती है। अंहकार से भरी गरीबी हमेशा अपने स्थान पर बनी रहती है।
2. भीतर की सरिता: कवि ने मनुष्य हृदय में उठे भावनाओं को भीतर की सरिता के कहा है। जिस प्रकार सरिता (नदी) अनवरत प्रवाहित होती रहती हैं, उसी प्रकार मनुष्य मन में विचार, भावनाएं सदैव प्रभावित होते रहते है। मनुष्य चाहे भी तो अपनी विचारों भावनाओं को अपने मन से दूर नहीं कर सकता।
3. बहलाती सहलाती आत्मीयता: कवि ने बहलाती सहलाती आत्मीयता के माध्यम से यह कहना चाहा है कि जब मनुष्य संकटो या दुखों से घिरा होता है, तो उसके आत्मीयजन उसे दुखों से उबारने के लिए सान्तवना देते है।
4. ममता के बादल: ममता के बादल से कवि का तात्पर्य भावार्द्रता से है। कवि ने हर समय की भावार्द्रता को गलत बताया है, क्योंकि इससे मनुष्य कमजोर हो जाता है।
2. इस कविता में और भी टिप्पणी-योग्य पद प्रयोग हैं। ऐसे किसी एक प्रयोग का अपनी ओर से उल्लेख कर उस पर टिप्पणी करें।
उत्तर: धुएँ के बादल: धुएं के बादल अर्थात विस्मृति के बादल । जब कवि के लिए स्मृति दर्ददायिनी बन जाती हैं, तब वे धुएं के बादलों में यानी विस्मृति में खो जाना चाहते है। लेकिन धुएं के बादलों के बीच भी यादों का धुँधलका मौजूद होता है।
3. तुम्हे भूल जाने की
दक्षिण ध्रुवी अंधकार-अमावस्या
शरीर पर, चेहरे पर, अंतर में पा लूं मैं
झेलूँ मैं, उसी में नहा लूँ मैं
झेलूँ मैं, उसी मं नहा लूं मैं
इसलिए कि तुमसे ही परिवेष्टित आच्छादित
रहने का रमणीय यह उजेला अब
सहा नहीं जाता है।
(क) यहाँ अंधकार-अमावस्या के लिए क्या विशेषता इस्तेमाल किया गया है, और उससे विशेष्य में क्या अर्थ जुड़ता है?
उत्तर: यहाँ अंधकार अमावस्या के लिए दक्षिण ध्रुवी विशेषण इस्तेमाल किया गया है।
इससे विशेष्य में यह अर्थ जुड़ता है कि कवि दक्षिण ध्रुवी अंधकार में अपनी स्मृतियों को भूला देना चाहते हैं क्योंकि आदमी का हरदम सबकुछ याद करके चलना संभव नहीं होता हैं।
(ख) कवि ने व्यक्तिगत संदर्भ में किस स्थिति को अमावस्या कहा है?
उत्तर: कवि ने व्यक्तिगत संदर्भ में भूलने की प्रक्रिया को अमावस्या कहा है। भले ही भूलना एक दंड हैं, फिर भी वे उसे पुरस्कार के रूप में ग्रहण करना चाहते है। वह विरह की अग्निशिखा बरदाश्त नहीं कर पाते हैं, और विस्मृति के अँधेरे में नहाना चाहते है।
(ग) इस स्थिति से ठीक विपरीत ठहरने वाली कौन-सी स्थिति कविता में व्यक्त हुई है? इस वैपरित्य को व्यक्त करने वाले शब्द का व्याख्यापूर्वक उल्लेख करें।
उत्तर: इस स्थिति से ठीक विपरीत ठहरने वाली स्थिति के लिए इन पंक्तियों का प्रयोग किया गया है।
मुसकाता चाँद ज्यों धरती पर रात भर
मुझ पर त्यों तुम्हारा ही खिलता वह चेहता है।
इस कविता में जहाँ दक्षिण ध्रुवी अंधकार की बात कहीं गयी है वहीं चाँद के मुसकुराने की बात कहीं गयी हैं। जो एक दूसरे विपरीत हैं। एक ओर वे कहते हैं कि विस्मृति के अंधकार को अपने अंतर में पा लेना चाहते हैं, वहीं दूसरी तरफ वे कहते है, कि जिस प्रकार आसमान में रहकर भी चाँद धरती पर रात-भर अपने प्रकाश बिखेरता हैं, उसी प्रकार प्रिय के पास न होने पर भी आसपास होने का एहसास है।
(घ) कवि अपने संबोध्य (जिसको कविता संबोधित है कविता का ‘तुम’) को पूरी तरह भूल जाना चाहते है, इस बात को प्रभावी तरीके से व्यक्त करने के लिए क्या युक्ति अपनाई है? रेखांकित अंशों को ध्यान में रखकर उत्तर दें।
उत्तर: कवि अपने संबोध्य को पूरी तरह भूल जाना चाहते है क्योंकि विरह की अग्निशिखा वे सहन नहीं कर पा रहे है। अतः वे विस्मृति के अंधकार को अपने शरीर और अंतर में पा लेना चाहते है। भूलना एक दंड जरूर है, पर वे उसे पुरस्कार की तरह पा लेना चाहते है। विस्मृति रूपी अंधकार अमावस्या में नहा लेना चाहते है।
4. ‘बहलाती सहलाती आत्मीयता बरदाश्त नहीं होती हैं’ – और कविता के शीर्षक ‘सहर्ष स्वीकारा हैं’ में आप कैसे अंतविरोध पाते हैं। चर्चा कीजिए।
उत्तर: ‘बहलाती सहलाती आत्मीयता बरदाश्त नहीं होती है’ में तथा कविता के शीर्षक में अंतविरोध पाया जाता हैं। कविता का शीर्षक ‘सहर्ष स्वीकारा है’ के माध्यम से कवि ने यह कहना चाहा हैं कि जीवन में आने वाले सुख-दुख, संघर्ष-अवसाद आदि को सम्यक भाव से अंगीकार किया है। जहाँ उन्होंने सभी को सहर्ष स्वीकारने की बात कहीं है, वहीं वे यह भी कहते है कि बहलाती सहलाती आत्मीयता उन्हें सहन नहीं होती। विरह उन्हें सहन नहीं होता। अतः वे विस्मृति के दंड को ग्रहण करना चाहते है।
5. ‘सहर्ष स्वीकारा हैं’ कविता मं कवि का उद्देश्य क्या है?
उत्तर: कवि कहना चाहते है कि मनुष्य की संपूर्ण चेतना अँधेरा उजाला, सुख-दुख, स्मृति-विस्मृति के ताना बाना से बुनी एक चादर हैं, जिसे आत्मा संपूर्णता से लपेट लेना चाहती हैं। ) की है।
6. इस कविता के कवि कौन है?
उत्तर: प्रस्तुत कविता के कवि हैं गजानन माधव मुक्तिबोध।
7. ‘सहर्ष स्वीकारा है’ कविता किस काव्य संग्रह से संकलित की गई हैं?
उत्तर: ‘सहर्ष स्वीकार है’ कविता ‘भूरी-भूरी खाक धूल’ नामक कविता संग्रह से ली गई है।
8. कवि ने किसे सहर्ष स्वीकारा है?
उत्तर: कवि ने अपने जीवन में आने वाली सुख-दुख संघर्ष-अवसाद, उठा-पटक सभी को सहर्ष स्वीकारा हैं।
9. कवि ने जीवन के सुख-दुख आदि को क्यों सहर्ष स्वीकारा है?
उत्तर: कवि ने अपने जीवन के दुख सुख को इसलिए सहर्ष स्वीकारा है, क्योंकि यह सबकुछ उनके विशिष्ट व्यक्ति को प्यारा है।
10. कवि किसे भूलना चाहते हैं और क्यों?
उत्तर: कवि उस विशिष्ट व्यक्ति को भूलना चाहते हैं, क्योंकि वह विरह रूपी अग्निशिखा को वह सहन नहीं कर सकते।
11. उनकी आत्मा क्या हो चुकी है?
उत्तर: उनकी आत्मा कमजोर और अक्षम हो चुकी है।
12. गजानन माधव ‘मुक्तिबोध’ का जन्म कब और कहाँ हुआ था?
उत्तर: गजानन माधव मुक्तिबोध का जन्म 13 नवंबर सन् 1917, श्योपुर ग्वालियर मध्य प्रदेश में हुआ था।
13. मुक्तिबोध के किसी एक काव्य संग्रह का नाम लिखे।
उत्तर: चाँद का मुँह टेढ़ा (1964) है।
14. मुक्तिबोध के पहले काव्य संग्रह का नाम लिखे।
उत्तर: मुक्तिबोध का पहला काव्य संग्रह ‘मंजीर’ है।
15. मुक्तिबोध की मृत्यु कब और कहाँ हुई थी?
उत्तर: मुक्तिबोध की मृत्यु 11 सितंबर सन् 1964 नयी दिल्ली में हुई थी।
16. कविता का सारांश लिखे।
उत्तर: कवि गजानन माधव “मुक्तिबोध” अपनी कविता के माध्यम यह कहना चाहते है कि जीवन में आनेवाली दुख-सुख संघर्ष अवसाद, उठा-पटक सबको सम्यक भाव से अंगीकार करना चाहिए। कवि को जहाँ से सबकुछ सहर्ष स्वीकार करने की प्रेरणा मिली है, उस विशिष्ट व्यक्ति या सत्ता को कुछ इस तरह स्वीकार और आत्मसात किया हैं, वह सामने न होते हुए भी उसके आसपास होने का एहसास होता है। लेकिन एहसास आप्लावनकारी है। और कवि उसकी भावप्रवणता के निजी पक्ष से उबरकर सिर्फ विचार की तरह उसे जीना चाहते है। कवि का सहज स्नेह की उष्मा जब विरह में अग्निशिखा-सी उद्दीप्त हो उठती हैं, तब वह मोह मुक्ति की कामना करने लगता है। वह चाहने लगता है कि भूलने की प्रक्रिया एक अमावस की तरह उसके भीतर इस तरह घटित हो कि चाँद जरा-सा ओट हो ले। भले ही दृढ़ता और तदजन्य कठोरता बड़े मानव मुल्य हैं, परंतु भूल जाना भी एक कला है। हर समय की भावार्द्रता मनुष्य को कमजोर बनाती है, अत: वह विस्मृति के अंधेरे में डूब जाना चाहते है। लेकिन धुएं के बादल भी पूर्ण विस्मृति घटित नहीं कर पाते है। यादों का धुंधलका वहाँ भी मौजूद है।
व्याख्या कीजिए:
1. ‘जिंदगी में जो कुछ है, जो भी है …………… संवेदन तुम्हारा है।’
उत्तर: शब्दार्थ:
सहर्ष – खुशी-खुशी स्वीकार करना, गरबीली गर्वीली।
अर्थ: कवि कहते है कि जीवन में जो कुछ भी मिला है, उन्होंने उसे सहर्ष स्वीकार किया है। उन्होंने अपने सुख-दुख, हर्ष-विषाद को खुशी-खुशी इसलिए स्वीकार किया क्योंकि वह उनके प्रिय को प्यारे है। उनकी अंहकार भरी गरीबी, उनके गंभीर अनुभव, इनके विचार वैभव सबकुछ उनके प्रिय को प्यारे है। कवि के मन की दृढ़ता, उनके अंदर बहने वाली भावनाओं की अभिनव सरिता सब मौलिक है। उनके हृदय में जो पल-पल जाग्रत हो रहा हैं, वह उनके प्रिय का संवेदन ही है।
2. जाने क्या ……………….. वह चेहरा है।
उत्तर: अर्थ: कवि कहते है कि मेरे दिल में उठे भावनाओं का मुझसे क्या संबंध है, क्या रिश्ता है, जितना भी उनको निकाल बाहर करने की कोशिश करते है, उतना ही पुनः भर आता है। कवि स्वयं प्रश्न करते है, क्या हृदय में कोई झरना है, जिसमें भावना रूपी मीठे पानी का बहाव है। जहाँ कवि हृदय में ये कोमल भावनाएँ है, वहीं बाहर उन्हें प्रेरणा देनी वाली विशिष्ट सत्ता है। जिस प्रकार चाँद आसमान में रहते हुए भी रात-भर धरती पर बना रहता है, उसी प्रकार कवि ने भी उस विशिष्ट सत्ता के मुस्कुराते चेहरे को आत्मसात किया है।
3. सचमुच मुझे दंड ……………. नहा लूँ मैं।
उत्तर: अर्थ: कवि को सहज स्नेह की उष्मा जब विरह में अग्निशिखा-सी उद्वीप्त हो उठी तो उन्हें थोड़ी-थोड़ी सी निःसंगता एकदम जरूरी लगने लगी। और उनका मन मोह मुक्ति की कामना करने लगा। वह विशिष्ट सत्ता को भुल जाने का दंड मांगते है। उनका मन चाहने लगा कि भूलने की प्रक्रिया एक अमावस की तरह उसके भीतर इस तरह घटित हो कि चांद जरा-सा ओट हो ले। वे दक्षिण ध्रुवी अंधकार की अमावस्या को शरीर पर, चेहरे पर, अंतर में उतार ले उसमें डुबकी लगा ले।
4. इसलिए कि तुमसे …………… बरदाश्त नहीं होती है।
उत्तर: शब्दार्थ:
परिवेष्टित – चारों ओर से घिरा हुआ।
रमणीय – सुंदर।
पिराना – दर्द करना।
बरदाश्त – सहन।
अर्थ: कवि कहते है उस विशिष्ट सत्ता से चारों ओर घिरा हुआ आच्छादित रहने का रमणीय उजेला उनसे सहा नहीं जाता। उनके ऊपर कोमल ममता के बादल भले मंडराते हो लेकिन उन्हें भीतर दर्द का अनुभव होता है। उनकी आत्मा कमजोर और अक्षम हो गई है। कवि कहते है कि हर समय की भार्वाद्रता भी कमजोर करती है। उन्हें सन्तवना देने वाली नया : 115 आत्मीय अब बरदाश्त नहीं होती हैं।
5. सचमुच मुझे दंड ………….. तुम्हें प्यारा है।
उत्तर: शब्दार्थ:
पाताल – आसमान।
गुहाओ – गुफाओं।
विवर – बिल।
लापता- खो जाना।
अर्थ: कवि कहते है कि वे अंधेरे के गुफाओं के डूबना चाहते है। वे धुएँ के बादल में बिल्कुल लापता होना चाहते है। लेकिन धुएं के बादल भी पूर्ण विस्मृति घटित नहीं क पाते। यादों का धुँधलका वहां भी है। कवि को जो भी अपना सा लगता या होता सा संभव होता है, उन सभी में उस विशिष्ट सत्ता के कार्यों के घेरा है। कवि कहते है, वर्तमान समय तक उनके जीवन में आनेवाले सभी चीजों को सहर्ष स्वीकारा हैं, क्योंकि वे सभी उस विशिष्ट सत्ता को प्यारा है।
S.L No. | CONTENTS |
आरोह: काव्य खंड | |
Chapter – 1 | दिन जल्दी-जल्दी ढलता है |
Chapter – 2 | कविता के बहाने |
Chapter – 3 | कैमरे में बंद अपाहिज |
Chapter – 4 | सहर्ष स्वीकारा है |
Chapter – 5 | उषा |
Chapter – 6 | कवितावली (उत्तर कांड से) |
Chapter – 7 | रुबाईयाँ |
Chapter – 8 | छोटा मेरा खेत |
Chapter – 9 | बादल – राग |
Chapter – 10 | पतंग |
आरोह: गद्य खंड | |
Chapter – 11 | बाजार दर्शन |
Chapter – 12 | काले मेघा पानी दे |
Chapter – 13 | चार्ली चैप्लिन यानी हम सब |
Chapter – 14 | नमक |
Chapter – 15 | शिरीष के फूल |
Chapter – 16 | भक्तिन |
Chapter – 17 | पहलवान की ढोलक |
Chapter – 18 | श्रम विभाजन और जाति प्रथा |
वितान | |
Chapter – 19 | सिल्वर वैडिंग |
Chapter – 20 | अतीत में दबे पांव |
Chapter – 21 | डायरी के पन्ने |
Chapter – 22 | जूझ |
6. जाने क्या रिश्ता है, जाने क्या नाता है
जितना भी उड़ेलता हूँ, भर-भर फिर आता है
दिल में क्या झरना है?
मीठे पानी का सोता है
भीतर वह, ऊपर तुम
मुसकाता चाँद, ज्यों धरती पर रात-भर
मुझ पर त्यों तुम्हारा ही खिलता वह चेहरा हैं।
उत्तर: प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य पुस्तक आरोह (भाग-2) के काव्य खंड के ‘सहर्ष स्वीकारा है’ से ली गई है। इसके कवि है, गजानन माधव मुक्तिबोध।
प्रस्तुत पंक्तियों के माध्यम से कवि यह कहना चाहते है कि उन्होंने जीवन के सब दुख- सुख, संघर्ष-अवसाद आदि सभी को सहर्ष स्वीकारा हैं।
कवि ने अपने जीवन के सब दुख-सुख, संघर्ष-अवसाद, उठा-पटक सम्यक भाव से स्वीकार किया है। क्योंकि वह सबकुछ जो उनका है, उस विशिष्ट सत्ता को प्रिय है। उनके हृदय में पल-पल उसी का संवेदन जाग्रत होता है। कवि जितना भी उसे हटाना चाहते है, उतना ही वह हृदय में भर-भर आती है। वह प्रश्न करते हुए कहते है कि क्या दिल में कोई झरना हैं, जिसमें भावना रूपी मीठे पानी का बहाव है। कवि ने उस विशिष्ट व्यक्ति या सत्ता को कुछ इस प्रकार स्वीकार किया हैं, कुछ इस प्रकार आत्मसात किया है, कि आज वह सामने नहीं भी है, तो भी आसपास उसके होने का एहसास है। जिस प्रकार आसमान में रहकर भी चांद रात भर धरती पर बना रहता है, उसी प्रकार उनकी आत्मा पर वह चेहरा झुका है। लेकिन यही सहज स्नेह की उष्मा जब विरह में अग्निशिखा सी उद्वीप्त हो उठी तो वह मोह मुक्ति की कामना करने लगे। वह चाहने लगे कि भूलने की प्रक्रिया एक अमावस की तरह उसके भीतर इस तरह घटित हो कि चाँद जरा-सा ओट हो ले। वे विस्मृति के अंधेरे में नाहाना चाहते हैं, विस्मृति का अंधेरा अपने शरीर, चेहरे तथा अंतर में पा लेना चाहते है।
विशेष: (1) इसकी सहज-सरल है।
(2) ‘भर-भर’ में पुनरुक्ति अंलकार का प्रयोग किया गया है।
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