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Class 12 Hindi MIL Chapter 5 उषा
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उषा
आरोह: काव्य खंड |
प्रश्नोत्तर:
1. कविता के किन उपमानों को देखकर यह कहा जा सकता है कि उषा कविता गाँव की सुबह का गतिशील शब्दचित्र हैं?
उत्तरः प्रस्तुत कविता में राख से लीपा हुआ चौका को उपमान के रूप में प्रयोग किया गया है। साधारणतः राख से लीपा हुआ चौका गाँवों में प्रयोग किया जाता है। कवि ने सूर्योदय के साथ एक जीवंत परिवेश की कल्पना करता है, जो गाँव की सुबह से जड़ता हैं- वहाँ सिल है, राख से लीपा हुआ चौका है और है स्लेट की कालिमा पर चाक से रंग मलते अदृश्य बच्चों के नन्हे हाथ।
2. भोर का नभ
राख से लीपा हुआ चौका
(अभी गीला पड़ा है)
नयी कविता में कोष्ठक, विराम चिह्नों और पंक्तियों के बीच बीच का स्थान भी कविता को अर्थ देता है। उपयुक्त पंक्तियों में कोष्ठक से कविता में क्या विशेष अर्थ पैदा हुआ हैं? समझाइए।
उत्तरः उपयुक्त पंक्तियों में कोष्ठक से कविता में विशेष अर्थ पैदा हुआ हैं। राख से लीपा हुआ चौका जो कुछ समय पहले ही लीपा गया हो, जों अभी भी गीला पड़ा हैं, देखने में बहुत ही पवित्र लगती हैं। राख से चौका लीपना पवित्रता का प्रतीक है। ठीक उसी प्रकार भोर का नभ भी लीपा हुआ चौका के समान पवित्र लगता हैं। सारा आसमान साफ और पवित्र दिखाई पड़ता हैं। यहाँ कवि ने समस्त उपमान लोक-संस्कृति से चुने हैं। अप्रस्तुत के माध्यम से प्रस्तुत की व्यंजना की गई है।
3. ‘उषा’ कविता में प्रातःकालीन आकाश की पवित्रता, निर्मलता और उज्जवलता का वर्णन किस प्रकार किया गया हैं?
उत्तरः कवि ने ‘उषा’ कविता में प्रातःकालीन आकाश की पवित्रता के लिए उसे ‘राख से लीपा हुआ चौका’ कहा है। जिस प्रकार चौके के राख से लीपकर पवित्र किया जाया हैं, उसी तरह प्रातःकालीन उषा भी पवित्र होती हैं। आकाश की निर्मलता के लिए कवि ने “काली सिल जरा से लाल केसर से कि जैसे धुल गई हो” का प्रयोग किया हैं। जिस प्रकार काली सिलवट को लाल केसर से धोने से उसका कालापन समाप्त हो जाता और वह स्वच्छ, निर्मल दिखाई देती है, उसी प्रकार उषा भी निर्मल, स्वच्छ है। उज्जवलता के लिए कवि गौर वर्ण की झिलमिल देह से तुलना की हैं। जिस प्रकार नीले जल में गोरा शरीर कान्तिमान और सुन्दर (उज्जवल) लगता हैं, उसी प्रकार भोर की लाली में आकाश की नीलिमा कांतिमान और सुन्दर लगती है।
4. ‘उषा’ कविता के कवि कौन हैं?
उत्तरः उषा कविता के कवि शमशेर बहादूर सिंह हैं।
5. ‘उषा नामक कविता में कवि ने किस समय का वर्णन किया हैं?
उत्तरः कवि ने सूर्योदय के ठीक पहले के पल-पल परिवर्तित प्रकृति का वर्णन किया है।
6. शमशेर बहादूर सिंह की किन्हीं दो रचनाओं का नाम लिखें।
उत्तरः शमशेर बहादूर सिंह की दो रचनाएँ इस प्रकार है – बात बोलेगी, काल तुझसे छोड़ है मेरी।
7. कवि ने भोर के नभ की पवित्रता को किससे तुलना की है?
उत्तरः कवि ने राख से लीपा हुआ चौका से भोर के नभ की पवित्रता की तुलना की है।
8. जादू टूटता है उषा का अब
सूर्योदय हो रहा हैं।
कवि ने ऐसा क्यों कहा हैं?
उत्तरः सूर्योदय से पूर्व आसमान में फैलते हुए उषा की आभा में एक आकर्षण होता हैं, एक जादू होता हैं, जो अनायास ही अपनी और खीचता हैं। परन्तु सूर्योदय के बाद वह भव्य सौन्दर्य नष्ट होने लगता है।
S.L No. | CONTENTS |
आरोह: काव्य खंड | |
Chapter – 1 | दिन जल्दी-जल्दी ढलता है |
Chapter – 2 | कविता के बहाने |
Chapter – 3 | कैमरे में बंद अपाहिज |
Chapter – 4 | सहर्ष स्वीकारा है |
Chapter – 5 | उषा |
Chapter – 6 | कवितावली (उत्तर कांड से) |
Chapter – 7 | रुबाईयाँ |
Chapter – 8 | छोटा मेरा खेत |
Chapter – 9 | बादल – राग |
Chapter – 10 | पतंग |
आरोह: गद्य खंड | |
Chapter – 11 | बाजार दर्शन |
Chapter – 12 | काले मेघा पानी दे |
Chapter – 13 | चार्ली चैप्लिन यानी हम सब |
Chapter – 14 | नमक |
Chapter – 15 | शिरीष के फूल |
Chapter – 16 | भक्तिन |
Chapter – 17 | पहलवान की ढोलक |
Chapter – 18 | श्रम विभाजन और जाति प्रथा |
वितान | |
Chapter – 19 | सिल्वर वैडिंग |
Chapter – 20 | अतीत में दबे पांव |
Chapter – 21 | डायरी के पन्ने |
Chapter – 22 | जूझ |
व्याख्या कीजिए:
1. प्रात नभ था
मल दी हो किसी ने।
उत्तरः शब्दार्थ:
नभ – आसमान।
भोर – सुबह।
राख – जली हुई वस्तु का अवशेष।
सिल – मसाला पीसने वाला पत्थर।
स्लेट – जिस पर चाक से लिखा जाता है।
प्रसंग: प्रस्तुत पद्याशं हमारी पाठ्य पुस्तक ‘आरोह’ के ‘उषा’ नामक कविता से लिया गया हैं। इसके कवि शमशेर बहादूर सिंह हैं।
संदर्भ: प्रस्तुत पद्याशं में कवि ने सूर्योदय के ठीक पहले के पल-पल परिवर्तित प्रकृति का शब्द चित्र किया हैं।
व्याख्या: कवि ने सूर्योदय के साथ एक जीवन परिवेश की कल्पना की हैं, जो गाँव की सुबह से जुड़ता हैं। उन्होंने प्रातःकाल के नभ का वर्णन किया हैं। भोर का नभ बहुत ही नीला हैं, बिल्कुल शंख की भाँति । कवि शमशेर बहादुर सिंह ने सूर्योदय से पहले आकाश को राख से लीपे हुए गीले चौके के समान कहा है। सूर्योदय से पहले आकाश धुंध के कारण कुछ-कुछ मटमैला और नमी से भरा होता है। राख से लीपा हुआ और गीला चौका भोर के इस प्राकृतिक रंग से अच्छा मेल खाता है। कवि ने आकाश के रंग के बारे में ‘सिल’ का उदाहरण देते हुए कहा है कि यह आसमान ऐसे लगता है मानो मसाला आदि पीसने वाला बहुत ही काला और चपटा सा पत्थर हो जो जरा से लाल केसर से धुल गया हो। कवि ने आसमान की तुलना स्लेट से करते हुए कहा हैं कि ऐसा लगता है किसी ने स्लेट पर लाल रंग की खड़िया चाक मल दी हो। सिल और स्लेट के उदारहण के द्वारा कवि ने नीले आकाश में उषाकालीन लाल-लाल धब्बों की और ध्यान आकर्षित किया हैं। कवि कहते है, जिस प्रकार काली सिल पर लाल केसर पीसने से उसका रगं केसरिया हो जाता है, उसी प्रकार रात का काला आकाश उषा के आगमन के साथ लाल अथवा केसरिया रंग का दिखाई देने लगता है।
2. नील जल में …………… सूर्योदय हो रहा हैं।
उत्तरः शब्दार्थ:
नील – नीला रंग।
गौर – नीला रंग।
गौर – गोरा, उजला।
देह – शरीर।
उषा – सूर्य का प्रकाश।
प्रसंग: प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य पुस्तक ‘आरोह’ के ‘उषा’ नामक कविता से ली गई है। इसके कवि हैं शमशेर बहादूर सिंह जी।
संदर्भ: प्रस्तुत पद्याशं में कवि ने सूर्योदय से ठीक पहले के पल-पल परिवर्तित प्रकृति का शब्द चित्र खीचा हैं।
व्याख्या: कवि ने भोर आसमान के सूर्य की तुलना सद्यस्नाता सुन्दरी की देह से की हैं। कवि कहते हैं, कि प्रातः सूर्य का आसमान में निकलना ऐसा प्रतीत होता है, मानो कोई गौरे वर्ण वाली सुन्दरी जल से बाहर निकलते हुए अपने शारीरिक सौन्दर्य की आभा विखेर रही हो। उषा का उदय बहुत ही आकर्षक होता है। नीले नभ में फैलता उषा की आभा उसके लाल लाल किरणे हृदय को अपनी और आकर्षित कर लेती हैं। इस आकर्षण में जादू हैं। परन्तु सूर्य के उदय होने से यह भव्य प्राकृतिक वातावरण नष्ट हो जाता हैं, क्योंकि सूर्य की किरणों से उसका आकर्षण समाप्त हो जाता हैं।
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