Class 12 Hindi MIL Chapter 2 कविता के बहाने

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Class 12 Hindi MIL Chapter 2 कविता के बहाने

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कविता के बहाने

आरोह: काव्य खंड

प्रश्नोत्तर:

1. इस कविता के बहाने बताएँ कि सब घर एक देने के माने क्या है? 

उत्तर: इसका तात्पर्य यह है कि कविता में किसी प्रकार की सीमा का कोई स्थान नहीं होता हैं। कविता कल्पना का सहारा लेकर कहीं भी अपनी उड़ान भर सकता, कहीं भी महक सकता हैं। कवि के अनुसार कविता हर जगह को एकाकार कर देती है। यह शब्दों का खेल हैं, जिसमें जड़, चेतन, अतीत, वर्तमान और भविष्य सभी उपकरण मात्र है। कवि में एक रचनात्मक ऊर्जा होती है जो कविता की सीमाओं के बंधन को खुद व खुद तोड़ देती है।

2. उड़ने और खिलने का कविता से क्या संबंध बनता हैं?

उत्तर: कविता के संदर्भ में उड़ने का तात्पर्य कल्पना का सहारा लेकर शब्दों के उड़ान से है। कवि कल्पना रूपी पंख लगाकर ऐसी उड़ान भरता है कि चिड़ियों को पीछे छोड़ देता है। जहाँ चिड़ियां एक सीमा तक अपनी उड़ान भर सकते है, वहीं कविता के उड़ान की कोई सीमा नहीं होती।

कविता अपने शब्दों के माध्यम से खिलती है। और अपने शब्दों में छिपे गहन अर्थ से कविता महकती है।

3. कविता और बच्चे की समानांतर रखने के क्या कारण हो सकते है?

उत्तर: कवि ने कविता और बच्चे को समानांतर रखा हैं, क्योंकि जिस प्रकार बच्चों के खेल में किसी प्रकार की सीमा का कोई स्थान नहीं होता उसी प्रकार कविता में भी सीमा का कोई स्थान नहीं होता। कवि कहते हैं कि कविता शब्दों का खेल है जिसमें कल्पना का सहारा लेकर कवि सारी सीमाओं को लाँघ जाता है। सारे स्थानों को एकाकार कर देता है। कविता में जड़, चेतन, भूत, भविष्य तथा वर्तमान सभी उपकरण मात्र ही है।

4. कविता के संदर्भ में बिना मुरझाए महकने के माने क्या होते हैं?

उत्तर: कविता के संदर्भ में बिना मुरझाए महकने का माने का तात्पर्य यह है कि कविता की मृत्यु नहीं होती। जहाँ फूल एक निश्चित सीमा के लिए खिलता है, और उसके बाद वह मुरझा जाता है। फूल के खिलने के साथ उसकी परिणति निश्चित है। लेकिन शब्दों के पंखुड़ियों से बने कविता कभी मुरझाते नहीं। वे सदैव बिना मुरझाये महकते रहते है।

5. ‘भाषा को सहूलियत’ से बरतने से क्या अभिप्राय है?

उत्तर: हर बात के लिए कुछ एक शब्द निर्धारित होते हैं, अतः किसी बात को कहने के लिए उसके निर्धारित शब्दों को प्रयोग अत्यंत आवश्यक माना जाता है। और जब ऐसा नहीं होता है, तब कथ्य का सही अर्थ नहीं निकल पाता अतः ‘भाषा को सहूलियत’ से बरतने का तात्पर्य है – सही बात का सही शब्द से जुड़ना। जब ऐसा होता है तो किसी दबाव या अतिरिक्त मेहनत की आवश्यकता नहीं होती वह सहूलियत के साथ हो जाता है।

6. बात और भाषा परस्पर जुड़े होते है किन्तु कभी-कभी भाषा के चक्कर में ‘सीधी बात भी टेढ़ी हो जाती है’ कैसे?

उत्तर: बात (कथ्य) और भाषा का गहरा सम्बन्ध होता है। सही बात का सही शब्द से जुड़ना आवश्यक होता है। किसी कथ्य को कहते समय उस कथ्य के अनुरूप जब भाषा का प्रयोग नहीं किया जाता हैं, तब भाषा के घुमावदार चक्कर में पड़ सीधी बात भी टेढ़ी हो जाती है।

7. बात (कथ्य) के लिए नीचे दी गई विशेषताओं का उचित बिंबों / मुहावरों से मिलान करें।

उत्तर: (क) बात की चूड़ी मर जाना – बात का प्रभावहीन हो जाना।

(ख) बात की पेंच खोलना – बात को सहज और स्पष्ट करना।

(ग) बात का शरारती बच्चे की तरह खेलना – बात का पकड़ में न आना।

(घ) पेंच को कील की तरह ठोंक देना – बात में कसावत होना।

8. ‘बात सीधी थी पर’ किस काव्य संग्रह में संकलित है?

उत्तर: ‘बात सीधी थी पर कोई दूसरा नहीं नामक काव्य संग्रह में संकलित है। 

9. प्रस्तुत कविता में कवि का उद्देश्य क्या है?

उत्तर: कवि ने कथ्य और माध्यम के द्वंद्व को उकेरते हुए भाषा की सहजता की बात की है।

10. बात किसके चक्कर में टेढ़ी फँस गयी है?

उत्तर: बात भाषा के चक्कर मे टेढ़ी फँस गयी।

11. कथ्य को प्रभावशाली बनाने के लिए कवि ने क्या किया?

उत्तर: कवि ने भाषा को तोड़ा-मरोड़ा, उलटा-पलटा।

12. कवि ने कथ्य को किससे तुलना की है?

उत्तर: कवि ने कथ्य को एक शरारती बच्चे के साथ तुलना की है।

13. कविता के बहाने के कवि कौन हैं?

उत्तर: इस कविता के कवि हैं, कुंवर नारायण।

14. कुंवर नारायण की कविताओं की विशेषता क्या हैं?

उत्तर: भाषा और विषय की विविधता कुंवर नारायण के कविताओं की विशेषता है।

15. कुंवर नारायण के किसी एक काव्य-संग्रह का नाम लिए?

उत्तर: “चक्रब्यूह” जिसकी रचना 1956 में हुई।

16. कुंवर नारायण की आत्मजयी किस विद्या की रचना है? 

उत्तर: “आत्मजयी” एक प्रबंध काव्य हैं।

17. चिड़िया के उड़ान तथा कविता के उड़ान में क्या अंतर हैं?

उत्तर: चिड़िया के उड़ान में एक सीमा होती है, जबकि कविता की उड़ान में सीमा का कोई स्थान नहीं होता।

18. “कविता के बहाने” कहाँ से ली गई है?

उत्तर: यह कविता “इन दिनों ” नामक काव्य संग्रह से ली गई है।

19. फूलों के खिलने और कविता के खिलने में क्या अंतर हैं?

उत्तर: फूल खिलते हैं एक निश्चित अवधि के लिए और बाद में वह मुरझाकर समाप्त हो जाते हैं, जबकि कविता खिलते हैं, परंतु वह कभी मुरझाता नहीं।

20. कविता एक खेल – कवि ने ऐसा क्यों कहा हैं?

उत्तर: कवि कहते हैं, कि कविता शब्दों का खेल है। और शब्दों के इस खेल में जड़, चेतन, अतीत, वर्तमान भविष्य सभी उपकरण मात्र है।

S.L No.CONTENTS
आरोह: काव्य खंड
Chapter – 1दिन जल्दी-जल्दी ढलता है
Chapter – 2कविता के बहाने
Chapter – 3कैमरे में बंद अपाहिज
Chapter – 4सहर्ष स्वीकारा है
Chapter – 5उषा
Chapter – 6कवितावली (उत्तर कांड से)
Chapter – 7रुबाईयाँ
Chapter – 8छोटा मेरा खेत
Chapter – 9बादल – राग
Chapter – 10पतंग
आरोह: गद्य खंड
Chapter – 11बाजार दर्शन
Chapter – 12काले मेघा पानी दे
Chapter – 13चार्ली चैप्लिन यानी हम सब
Chapter – 14नमक
Chapter – 15शिरीष के फूल
Chapter – 16भक्तिन
Chapter – 17पहलवान की ढोलक
Chapter – 18श्रम विभाजन और जाति प्रथा
वितान
Chapter – 19सिल्वर वैडिंग
Chapter – 20अतीत में दबे पांव
Chapter – 21डायरी के पन्ने
Chapter – 22जूझ

व्याख्या कीजिए:

1. कविता एक उड़ान …………. चिड़िया क्या जाने?

उत्तर: शब्दार्थ: 

उड़ान – ऊपर उड़ना।

माने- मतलब।

अर्थ: यहाँ कवि वर्तमान समय में कविता के वजूद को लेकर आशांकित है। उन्हें डर है कि कहीं कविता यांत्रिकता के दवाब में अपना अस्तित्व न खो बैठे। कवि कहते हैं कि चिड़िया के उड़ान की एक सीमा होती है, परंतु कविता के उड़ान की कोई सीमा नहीं होती है। कवि कहते हैं, कविता की इस उड़ान को चिड़िया नहीं जान सकती है। ऐसा लगता है मानों कविता शब्दों का खेल है, जो बाहर-भीतर इस घर, उस घर जाकर अपनी सीमाओं के बंधन को तोड़ देता है। ऐसा लगता है मानो कविता पंख लगाकर उड़ान भर रही हो और उसकी इस उड़ान को चिड़ियां क्या जाने।

2. कविता एक लिखना ………….. फूल क्या जाने?

उत्तर: शब्दार्थ: 

महकना – खुशबू देना।

माने – मतलब, अर्थ।

अर्थ: कवि कहते हैं, जिस प्रकार फूल खिलते है, उसी प्रकार कविता भी शब्दों, भावों, अंलकारों से परिपूर्ण होकर खिलती हैं। परंतु दोनों के खिलने में अंतर है। फूल एक निश्चित समय के लिए खिलती है। उसके खिलने के साथ उसकी परिणति भी निश्चित होती है। लेकिन कविता बिना मुरझाये हर जगह, बाहर, भीतर, इस घर, उस घर अपनी खुशबू बिखेरता है। अतः खिल कर मुरझाने वाले फूल कविता के बिना मुरझाये महकने के माने नहीं जान सकती।

3. कविता एक खेल ………… बच्चा ही जाने।

उत्तर: अर्थ: कवि कहते हैं कि जिस प्रकार बच्चों के खेल में किसी प्रकार की सीमा का कोई स्थान नहीं होता ठीक उसी प्रकार कविता भी शब्दों का खेल हैं, जिसमें सीमा का कोई स्थान नहीं होता। शब्दों के इस खेल में सभी वस्तुएं उपकरण मात्र होते हैं। जिस प्रकार बच्चे खेलते समय घरों में फर्क नहीं देखते उसी प्रकार कविता भी सभी जगहों को एकाकार कर देती हैं। और कविता के इस एकाकार कर देने के माने केवल बच्चे ही समझ सकते है।

4. कविता एक खेल ……………. बच्चा ही जाने।

उत्तर: प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक आरोह (भाग-2) के काव्य खंड के “कविता के बहाने ” नामक कविता से ली गई हैं। इसके कवि हैं, कुंवर नारायण प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने कविता को शब्दोंका खेल कहा है।

कवि कहते हैं वर्तमान समय कविता के वजूद को लेकर आशंकित हैं। यांत्रिकता के कारण कविता का अस्तित्व मिटता जा रहा है। कवि कहते हैं कि जिस प्रकार खेलते समय किसी सीमा को नहीं मानते है। वे खेलते समय हर घर को एकाकार कर देते हैं, उसी प्रकार कविता में किसी सीमा का कोई स्थान नहीं होता है। कवि कहते है कि कविता का सब घर एक कर देने के माने केवल बच्चे ही जान सकते हैं।

विशेष:

1. कविता को कवि ने शब्दों का खेल कहा हैं।

2. भाषा सहज, सरल तथा प्रवाहमयी हैं।

5. बात सीधी थी …………… होती चली गई।

उत्तर: शब्दार्थ: 

सीधी – सरल।

पेचीदा – जटिल आदि।

भावार्थ: कवि ने भाषा की सहजता की बात कहीं है। वे कहते है हर बात के लिए कुछ खास शब्द नियत होती है। कवि कहते है, एक बार बात सरल होने पर भी सही भाषा का प्रयोग न होने के कारण या सही शब्दों का प्रयोग न होने के कारण उस कथ्य का अर्थ टेढ़ा हो गया। और उस कथ्य के सही अर्थ पाने की कोशिश में कवि ने भाषा को कुछ उल्टा पल्टा उसे तोड़ा मरोड़ा तथा घुमाया फिराया। कवि ने ऐसा इसलिए किया क्योंकि वह चाहते है, या तो कथ्य का सही अर्थ सामने आये या फिर कथ्य भाषा से बाहर निकल आये। परन्तु इससे भाषा के साथ-साथ कथ्य और भी कठिन होती चली जाती है।

6. सारी मुश्किल …………… वाह वाह।

उत्तर: शब्दार्थ: 

मुश्किल – कठिनाई।

धैर्य – हिम्मत।

पेंच – गांठ।

करतब – कार्य।

तमाशबीनों – जो तमाशा देखता है (दर्शक)।

भावार्थ: जिस प्रकार हर पेंच के लिए एक निश्चित खाँचा होता है, ठीक उसी प्रकार हर बात के लिए एक निश्चित शब्द होता है । कवि का कथ्य ज़ब सही भाषा के अभाव में टेढ़ी फँस गई तो वे सारी मुश्किल को समझे बिना ही उससे बाहर निकलने की अपेक्षा भाषा के घुमावदार चक्कर में वे और भी उलझते जा रहे थे। और कवि के इस कार्य को देख वहां जो तमाशबीन या दर्शकमण्डली थी, वे शाबासी और वाह-वाही दे रहे थे।

7. आखिरकार …….……. घूमने लगी।

उत्तर: शब्दार्थ: 

आखिरकार – अंतत:।

जबरदस्ती – बलपूर्वक।

चूड़ी मर जाना – अर्थहीन आदि।

भावार्थ: अतंतः वहीं हुआ जिसका कवि को डर था। कथ्य और माध्यम के इस द्वन्द में कथ्य अर्थहीन होकर रह गया। और वह कथ्य अर्थहीन होकर भाषा में बेकार घूमने लगी।

8. हार कर मैंने ………….. कभी नहीं सीखा?

उत्तर: शब्दार्थ: 

हार – पराजय।

कसाव – जकड़न।

सहूलियत – आसानी आदि। 

भावार्थ: कवि हारकर अर्थहीन कथ्य को उसी जगह ठोंक दिया। अर्थात कवि ने उसे भाषा के चक्कर से निकालने की अपेक्षा उसे वैसा ही छोड़ दिया। कवि का कथ्य ऊपर से तो अर्थयुक्त प्रतीत हो रहा था, परन्तु जिसमें न दबाव था और न ही शक्ति । कथ्य एक शरारती बालक की तरह कवि से खिलवाड़ कर रही थी। कथ्य रूपी शरारती बालक ने जब कवि को हारकर पसीना पोछते हुए देखा तो उनसे यह प्रश्न कर बैठा कि क्या कवि ने भाषा को सहूलियत से प्रयोग करना नहीं सीखा?

9. जोर जबरदस्ती से

बात की चूड़ी मर गई

और वह भाषा में बेकार घूमने लगी।

उत्तर: प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य पुस्तक आरोह (भाग-2) के काव्यखण्ड के ‘बात सीधी थी पर’ से ली गई है। इसके कवि है कुँवर नारायण जी।

कवि ने यहाँ भाषा के सहजता के महत्व को दिखाया है।

कवि कहते हैं, बात (कथ्य) और भाषा का परस्पर सम्बन्ध होता है। अच्छी बात या अच्छा कवि तभी बनते है, जब सही बात के लिए सही शब्द का प्रयोग किया जाता है। एक बार जब कवि का कथ्य भाषा के चक्कर में फँसकर प्रभावहीन हो गया तो उन्हें प्रभावशाली बनाने के लिए कई यत्न करने पड़ते है। उन्होंने भाषा को उलटा-पलटा, तोड़ा मरोड़ा परंतु कथ्य और भी पेचीदा होता गया और अंत में कवि को जिस बात से डर था वहीं हुआ। कवि द्वारा प्रयत्न किये जाने पर भी कथ्य भाषा के चक्कर से नहीं निकल पायी। और कथ्य प्रभावहीन हो भाषा में बेकार घूमने लगी।

विशेष:

1. कवि ने कथ्य और भाषा के द्वंद्व को दिखाया है।

2. यहाँ सहज सरल भाषा का प्रयोग किया गया है।

3. अलंकार:

अनुप्रास – जोर जर्बदस्ती (‘ज’ की आवृत्ति एक से अधिक बार है)।

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