SEBA Class 9 Hindi MIL Chapter 2 भजन

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SEBA Class 9 Hindi MIL Chapter 2 भजन

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भजन

पद्य खंड

अभ्यास -माला

बोध एवं विचार:

1. पूर्ण वाक्य में उत्तर दीजिएः

(क) हिदी की कृष्ण भक्ति-काव्यधारा में कवयित्री मीराँबाई को कौन सा स्थान प्राप्त है?

उत्तर: हिन्दी की कृष्ण भक्ति काव्यधारा में कवयित्री मीराँबाई को महाकवि सूरदास के बाद ही का स्थान प्राप्त है।

(ख) बचपन में मीराँबाई का लालन-पालन उसके दादाजी के ही संरक्षण में क्यों हुआ था?

उत्तर: बचपन में ही मीराँबाई की माता का स्वर्गवास होने और पिता के युद्ध में व्यस्त रहने के कारण मीराबाई का लालन-पालन परम कृष्ण-भक्त दादाजी के संरक्षण में हुआ।

(ग) मीराँबाई की काव्य-भाषा मूलतः क्या है?

उत्तर: मीराबाई की काव्य भाषा मूलतः हिन्दी की उपभाषा राजस्थानी है।

(घ) लोग मीराबाई को क्यों ‘बावरी’ कहा करते थे?

उत्तर: मीरांबाई भगवान कृष्ण की अनन्य आराधिका थीं। कृष्ण के प्रति उनके आशक्ति के लिए उसे लोग बावरी कहा करते थे।

(ङ) कवयित्री मीराँबाई ने अपने मन से कहां चलने का आग्रह किया है?

उत्तर: कवयित्री मीराँबाई ने अपने मन से सबको यमुना के किनारे चलने का आह्वान किया है, जिसके किनारे कृष्ण जी अपने भैया और दूसरे गोप-बालकों के संग खेला करते थे।

2. संक्षिप्त उत्तर दीजिए:

(क) ‘हरि थें हर्या जन रो भीर’ – का आशय स्पष्ट कीजिए।

उत्तर: कवयित्री भगवान श्रीकृष्ण के भक्त के भी सारे दुःख हर लो अर्थात सभी दुखों का नाश कर दो।

(ख) किसने और क्यों मीराबाँई के पास विष का प्याला भेजा था?

उत्तर: राजा ने मीराबाँई को मारने के लिए विष का प्याला भेजा था।

(ग) कृष्ण किस रूप में यमुना के किनारे क्रीड़ा किया करते थे?

उत्तर: कृष्ण गो-पालक के रूप में यमुना के किनारे क्रीड़ा करते थे।

(घ) कवयित्री मीराबाँई ने मनुष्यों को क्या-क्या करने के आदेश दिये हैं?

उत्तर: कवयित्री मीराबाँई ने मनुष्यों को राम नाम का रस पीने का आह्वान करते हुए मीराबाँई ने यह उपदेश दिया है कि सभी मनुष्य कुसंग त्यागकर सत्संग में बैठकर कृष्ण का कीर्तन करें, मन से काम, क्रोध, मद, लोभ, मोह को निकाल दें तथा प्रभु कृष्ण प्रेम-रंग-रस से सराबोर हो उठे। हरि भक्ति ही मनुष्य के मुक्ति का एकमात्र द्वार है।

3. सम्यक उत्तर दीजिए:

(क) श्रीकृष्ण ने कब और किस प्रकार द्रोपदी की लाज की रक्षा की थी?

उत्तर: राजा द्रोपद की पुत्री द्रौपदी पाँच पाण्डवों की धर्मपत्नी थी। दुर्योधन के साथ जुआ खेलने के समय महाराज युधिष्ठिर द्रौपदी को बाजी में हार गये थे। तब दुर्योधन की आज्ञा से दुःशासन केश से पकड़कर उन्हें भरी राजसभा में खींच लाया और नग्न करने के उद्देश्य से उनकी साड़ी खींचने लगा। तब द्रौपदी ने अपनी लज्जा की रक्षा के लिए भगवान श्रीकृष्ण को सहायतार्थ पुकारा। श्रीकृष्ण की कृपा से द्रौपदी की साड़ी बढ़ती गयी और दुःशासन खींचते-खींचते थक गया। इस प्रकार श्रीकृष्ण ने द्रौपदी की लज्जा की रक्षा की।

(ख) भक्त की रक्षा के लिए कब विष्णु भगवान ने नृसिंह का रूप धारण किया था?

उत्तर: दैत्यराज हिरण्यकशिपु के पुत्र प्रहलाद परम विष्णु भक्त ते। उन्हें विष्णु की भक्ति और शक्ति पर अटल विश्वास था। पिता ने पुत्र को भक्ति-मार्ग से हटाने के अनेक प्रयास किये। असफल होकर उन्होंने पुत्र प्रह्लाद को अनेक यातनाएँ दीं। एकदिन हिरण्यकशिपु ने पुत्र से पूछा- ‘बता तेरा ईश्वर कहाँ है?’ प्रहलाद ने उत्तर दिया- ‘विष्णु भगवान सर्वत्र हैं, यहाँ तक इस खंभे में भी हैं।’ हिरण्यकशिपु ने गुस्से से खंभे पर पक्षाघात किया तो विष्णु भगवान नृसिंह का रूप धारण कर उसमें से निकल आये थे और हिरण्यकशिपु को मार कर प्रहलाद की रक्षा की थी।

(ग) विष्णु भगवान ने गजराज को कब और कैसे डूबने से बचाया था?

उत्तर: श्वेत द्वीप के किसी सरोबर में ‘हाहा’ नामक एक संघर्ष सापग्रस्त होकर ग्राह (मगरमच्छ) के रूप में रहता था। उसी सरोबर के किनारे राजा इंद्रदवन भी शापग्रस्त होकर गजराज बनकर रहते थे। एकदिन जब गजराज कुछ हथिनियों के साथ सरोबर में जल पीने रहा था, तब ग्राह ने उसके पैर पकड़ लिए। दोनों के बीच खींचातानी द्वारा जोर की आजमाइश होने लगी। अंत में जब हाथी कमजोर पड़ने लगा और हथिनियों की सहायता से भी कोई काम न बना तो गजराज विष्णु भगवान को पुकारने लगा। पुकार सुनकर विष्णु भगवान नंगे पैर ही दौड़े आए और सुंदरर्शन चक्र ने ग्राह को मारकर गमराज को संकट से मुक्ति दिला दो।

(घ) कवयित्री मीराँबाई का संक्षिप्त साहित्यिक परिचय दीजिए।

उत्तर: हिंदी की कृष्णभक्ति – काव्याधारा में कवयित्री मीरौंबाई का स्थान महाकवि सूरदास के बाद ही है। मीराँबाई भगवान कृष्ण की अनन्य आराधिका थीं। उनके साहित्य में श्रीकृष्ण भक्ति के पद ही मिलते हैं। कृष्ण-भक्ति काव्य धारा में सूरदास के बाद मीरा का ही नाम आता है। उनके भजन में अपने आराध्य के प्रति एकनिष्ठता है।

मीरा द्वारा रचित साहित्यों में गीत गोविंद की टीका, चरित, नरसी जी का मायरा, राम गोविंद मीरा की गरबी फटकर पद इत्यादि ग्यारह रचनाएँ हैं। किन्तु प्रामाणिकता की दृष्टि से ‘मीराँबाई की पदावली’ ही प्रसिद्ध है। उनकी भाषा में राजस्थानी के अलावा ब्रज, खड़ीबोली, पंजाबी तथा गुजराती के शब्दों का समावेश है।

(ङ) पठित पदों के आधार पर मीराँबाई के कृष्ण प्रेम स्वरूप स्पष्द कीजिए।

उत्तर: ‘भजन’ शीर्षक के अंतर्गत संकलित प्रथम पद में कवयित्री ने अपने आराध्य कृष्ण जी की भक्त वत्सलता का वर्णन किया है। द्रोपदी की लाज रखने वाला, भक्त प्रहलाद को रक्षा करने वाला, डूबते हुए गजराज को कुम्भीर के ग्राह से बचाने वाला विष्णु भगवान के सामने वह अपनी माठा टेका है।

दूसरे पद में अपने आराध्य के प्रति पूर्ण समर्पण का भाव व्यंजित हुआ है। पैरे पे अपनी घूंघर बाँधकर मीराँबाई नाच रही थी, तब जाकर लोग उसे मीराँ बावरी आख्या दी थी। उसकी सासु उसे कुलनासी कहकर गालियाँ देती थई लेकिन मीराँबाई पूर्ण रूप से कृष्ण प्रेम में अपने को विलीन कर दी।

तीसरे पद में सत्संग में रहकर राम-नाम-रस पीने और कृष्ण रंग से अपने को रंगाने की बात की गई है। सभी मनुष्य कुसंग छोड़कर, सत्संग में बैठकर कृष्ण का गुणानुकीर्तन करें। हरि भक्ति ही मनुष्य के मुक्ति का कमाद्र द्वार है।

चौथे पर में कवयित्री ने अपने मन से उस यमुना के किनारे चलने का आह्वान किया है, जिसके किनारे कृष्ण जी अपने मैया और दूसरे गोप-बालकों के संग खेला करते थे।

4. सप्रसंग व्याख्या कीजिए:

(क) पग बाँध घूँघरयाँ __________ थारी सरणाँ आस्याँरी॥

उत्तर: प्रसंगः प्रस्तुत पंक्तियां हमारी पाठ्यपुस्तक अंबर भाग1 के अंतर्गत कवयित्री मीराँबाई द्वारा रचित ‘भजन’ से ली गई हैं।

संदर्भ: इस पंक्तियों में मीराँबाई का श्रीकृष्ण के प्रति पूर्ण समर्पण का बाव व्यंजित हुआ है।

व्याख्या: श्रीकृष्ण के परम भक्तिन मीराँबाई को गिरधर के प्रति प्रेम देखकर सब उसको ‘बावरी’ कहकर पुकारते थे, लेकिन उसकी सास उसको कुलनासी कहकर अपमान करती थी। लेकिन मीराँबाई पैरों में धूँघरु बांधकर कृष्ण प्रेम में विलीन होकर नाच रही थीं। क्योंकि मीराँबाई को उस और ध्यान देने का समय नहीं थी। वह तो बस साधु संतों के साथ रहते, अपने आराध्य कृष्णजी से लिए भजन कीर्तन करते अपना सम्पूर्ण जीवन बीता दिया।

(ख) राम नाम रस पीजै _________ ताहिके रंग में भीजै॥

उत्तरः प्रसंगः प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक अंबर भाग 1 के अंतर्गत कवयित्री मीराँबाई द्वारा रचित ‘भजन’ से ली गई हैं।

संदर्भ: इन पंक्तियों में मीराँबाई सबको सत्संग में रहकर राम-नाम रस पीने और कृष्ण के रंग से अपने को रंगाने की बात की गई है।

व्याख्या: कवयित्री मीराँबाई मनुष्य मात्र से राम-नाम का रस पीने का आह्वान करते हुए कहती हैं कि हे मनुष्य! तुम लोग राम नाम का रस पीओ। कुसंग त्यागकर संत्संग में बैठकर हरि का कीर्तन सुन लो। मन से काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार तथा मात्सर्य- इन छह रिपुओं को चित्र से निकाल दें तथा कृष्ण के प्रेम-रंग-रस में सराबोर हो उठे।

अतः कवयित्री ने मानव की मुक्ति का एकमात्र साधन हरि भक्ति ही माना है।

(ग) चलाँ मण वा जमणा ___________ क्रीड़याँ संग बलवीर।

उत्तर: प्रसंग: प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक ‘अंबर भाग 1’ के अंतर्गत कवयित्री मीराँबाई द्वारा विरचित ‘भजन’ से लिया गया है।

संदर्भ: इन पंक्तियों में मीराँबाई ने अपने मन से उस यमुना के किनारे चलने का आह्वान किया है, जिसके किनारे कृष्ण जी अपने भैया और दूसरे गोप-बालकों के संग खेला करते थे।

व्याख्या: कवयित्री मीराँबाई मनुष्यों को अपने लोभ, मोह से मन को हटाकर सबको यमुना के किनारे आने की बुलावा दिया है जहां भगवान विष्णु अपने बड़े भैया बलराम सहित अन्य गोप-बालकों के साथ समय बिताते थे।

S.L No.CONTENTS
(GROUP – A) काव्य खंड
Chapter – 1पद
Chapter – 2भजन
Chapter – 3ब्रज की संध्या
Chapter – 4पथ की पहचान
Chapter – 5शक्ति और क्षमा
Chapter – 6गांधीजी के जन्मदिन
Chapter – 7ओ गंगा बहती हो क्यों
गद्य खंड
Chapter – 8पंच परमेश्वर
Chapter – 9खाने-खिलाने का राष्ट्रीय शाोक
Chapter – 10गिल्लू
Chapter – 11दुख
Chapter – 12जीवन-संग्राम
Chapter – 13अंधविश्वास की छोटें
Chapter – 14पर्वी का देश भारत
(GROUP – B) काव्य खंड
Chapter – 15बरगीत
Chapter – 16मुक्ति की आकांक्षा
गद्य खंड
Chapter – 17वे भूले नहीं जा सकते
Chapter – 18पिंपलांत्रीः एक आदर्श गाँव

भाषा एवं व्याकारण:

1. तत्सम रूप लिखिए:

भगत, विख, दरसण, जमणा, सीतल, अमरित

उत्तर: भगत — भक्त।

विख — विष।

अमरित — अमृत।

सीतल — शीतल।

दरसण — दर्शन।

जमणा — यमुना।

2. विलोमार्थक शब्द लिखिए:

विष, आशा, सुसंग, निर्मल, शीतल

उत्तर: विष — अमृत।

आशा — निराशा।

कुसंग — सत्संग।

निर्मल — गन्दा।

शीतल — उष्ण।

3. निम्नलिखित शब्द समूहों के लिए एक एक शब्द लिखिए:

(क) भगवान की भक्ति करने वाली स्त्री।

उत्तर: आराधिका, भक्तिन।

(ख) किसी की रक्षा करने वाला व्यक्ति।

उत्तर: रक्षक।

(ग) जो नृत्य करती हो।

उत्तर: नर्तकी।

(घ) गिरि को धारण करनेवाला।

उत्तर: गिरिधर।

(ङ) जिस कपड़े का रंग पीला हो।

उत्तर: पीताम्बर।

अतिरिक्त प्रश्नोत्तर:

1. ‘हां’ या ‘नहीं’ में उत्तर दो:

(क) हिन्दी की कृष्ण भक्ति काव्य-धारा में कवयित्री मीराँबाई का स्थान सर्वोपरि है।

उत्तर: नहीं ।

(ख) कवयित्री मीराँबाई भगवान श्रीकृष्ण की अनन्य आराधिका थीं।

उत्तर: हाँ।

(ग) मीराँबाई को ‘कृष्ण प्रेम दीवानी’ की आख्या प्राप्त हुई थी।

उत्तर: हाँ।

(घ) राजपूतों की तत्कालीन परंपरा का विरोध करते हुए क्रांतिकारिणी मीराँ सती नहीं हुई।

उत्तर: हाँ।

(ङ) मीराँबाई अपने को श्रीकृष्ण जी के चरणों में पूरी तरह समर्पित नहीं कर पायी थीं। 

उत्तर: नहीं।

(च) मीराँबाई सभी मनुष्यों को अपने मन से यमुना किनारे आने का आमंत्रण दिया है।

उत्तर: हाँ।

(छ) मीराँबाई की काव्य की भाषा मधुर, सरल और प्रवाहपूर्ण है।

उत्तर: हाँ।

(ज) मीराँबाई का विवाह सन, 1556 में हुआ था।

उत्तर: नहीं।

2. मीराँबाई का जन्म कब और कहाँ हुआ था?

उत्तर: मीराँबाई का जन्म सन प्राचीन राजपूताने के अंतर्गत ‘मेड़ता’ प्रान्त के ‘कुड़की’ नामक स्थान में सन, 1498 में हुआ था।

3. भक्त कवयित्री मीराँबाई को कौन-सी आख्या मिली है?

उत्तर: भक्त कवयित्री मीराँबाई को ‘कृष्ण प्रेम दीवानी’ की आख्या मिली है।

4. मीराँबाई के कृष्ण भक्तिपरक फुटकर पद किस नाम से प्रसिद्ध है?

उत्तर: मीराँबाई के कृष्ण भक्तिपरक फुटकर पद ‘मीराँबाई की पदावली’ नाम से प्रसिद्ध है।

5. मीराँबाई के पिता कौन थे?

उत्तर: मीराँबाई के पिता राम रंत सिंह थे।

6. कवयित्री मनुष्यों से किस नाम का रस पीने का आह्वान किया है?

उत्तरः कवयित्री मीराँबाई ने मनुष्यों से राम (कृष्ण) नाम का रस पीने का आह्वान किया है।

7. मीराँबाई का विवाह कब और किसके साथ हुआ था?

उत्तर: मीराँबाई का विवाह सन 1516 मेवाड़ के महाराजा सांगा के ज्येष्ठ पुत्र भोजराज के साथ हुआ था। दुर्भाग्यवश विवाह के सात वर्ष बाद ही भोजराज जी का निधन हो गया।

8. मीराँबाई का देहावसान कब हुआ?

उत्तर : सन 1546 में मीराँबाई का देहावसान द्वारका के रणघोड़ जी के मंदिर में हुआ था।

9. मीरा भजनों की लोकप्रियता पर प्रकाश डालो।

उत्तर: कवयित्री मीराँबाई श्रीकृष्ण की अनन्य आराधिका थी। उसके द्वारा विरचित गीत पद हिंदी के साथ-साथ भारतीय साहित्य में भी अमूल्य निधि है। भक्ति भावना एवं काव्यत्व के सहज संतुलन के कारण उनके पद अनूठे बन पड़े है। कृष्ण प्रेम माधुरी, सहज-अभिव्यक्ति और सांगीतिक लय, मीरा भजनों की लोकप्रियता के अन्यतम कारण है।

10. मीराँबाई का बचपन किस प्रकार बीता था?

उत्तर: बचपन में ही मीरा की माता का देहांत हो जाने के कारण तथा पिता राव रंत सिंह के भी युद्धों में व्यस्त रहने के कारण उनका पालन-पोषण दादाजी राव दूदाजी की देश रेख में हुआ। परम कृष्ण-भक्त दादाजी के साथ रहते रहते बालिका मीराँ के कोमल हृदय में भी कृष्ण-भक्ति का भाव उदय हुआ। आगे जाकर उन्होंने कृष्ण को ही अपना आराध्य प्रभु तथा पति मान लिया।

11. मीराँबाई का देहावसान किस प्रकार हुआ था?

उत्तर: विवाह के सात वर्ष बाद ही विधवा होने के कारण मीराँबाई सती न होकर राजमहल त्यागकर कृष्ण की आराधना तथा साधुओं की संगति में समय बीताने लगी। अंत में साधु-संतों के साथ घूमते-घामते वे द्वारिका पहँच गई। कहा जाता है कि वहाँ रणघोड़ जी के मंदिर में अपने आराध्य का भजन कीर्तन करते करते सन 1546 के आसपास वे भगवान की मूर्ति में सदा के लिए विलीन हो गयीं।

12. कवयित्री मीराँबाई की काव्य-भाषा पर प्रकाश डालो।

उत्तर: कवयित्री मीराँबाई के कृष्ण भक्तिमत हृदय के स्वतः अठगार भक्तिपरक गीत ‘मीराँबाई की पदावली’ नाम से ख्यात है। उन्होंने मुख रूप से हिंदी की उपभाषा राजस्थानी में ही काव्य रचना की है, परंतु उसमें ब्रज, खड़ो बोली, पंजाबी, गुजराती आदि के शब्द भी मिल जाते हैं। कृष्ण प्रेम-माधुरी सहज अभिव्यक्ति और सांगीतिक लय के कारण उनके पद पावन एवं महत्वपूर्ण बन पड़े हैं।

13. मीराँबाई के जीवन वृत्त पर प्रकाश डालो।

उत्तर: कृष्ण प्रेम-भक्ति की सजीव प्रतिमा मीराँबाई के जीवन वृत्त को लेकर विद्वानों में काफी मतभेद है। कहा जाता है कि उनका जन्म सन 1498 ई. के आस-पास प्राचीन राजपुताने के अंतर्गत ‘भेड़ता प्रांत की कड़की’ नामक स्थान में राठौड़ वंश की मेड़तिया शाखा में हुआ था। बचपन में ही माता का देहांत हो जाने के कारण तथा पिता राव रत्न सिंह के युद्ध में व्यस्त रहने के कारण बालिका मीराँबाई का पालन-पोषण उनके दादा राव दूढ़ाजी के द्वारा हुईं। दादाजी परम वैष्णव भक्त थे तथा उन्हीं के संसर्ग में बालिका मीराँ के कोमल हृदय में कृष्ण भक्ति का बीज अंकुरित होकर बढ़ने लगा। आगे चलकर कृष्ण को ही उन्होंने अपना आराध्य तथा पति मान लिया।

सन 1516 में मेवाड़ के महाराजा राणा संगा के ज्येष्ठ पुत्र कुँवर भोजराज के साथ मीराँबाई का विवाह हुआ, किंतु दुर्भाग्यवश विवाह के सात वर्ष बाद हो भोजराज जी का स्वर्गवास हो गया। लेकिन राजपूतों की तत्कालीन प्रथा के अनुसार वह सती नहीं बनी, क्योंकि वह स्वयं को अजर-अमर श्रीकृष्ण की चिर सुहागिनी मानती थी। राजघराने की ओर से उन्हें तरह-तरह यातनाएँ दी जाने लगी, लेकिन उनका प्रभु-प्रेम अटल रहा। इसलिए वे अपने प्रभु गिरधर नागर की खोज में राज-प्रसाद से निकल पड़ी। साधु संतों के साथ घूमते-घामते अंत में मीराँबाई द्वारिकाधाम पहुँची। प्रसिद्ध है कि वहा श्री रणछोड़ जी के मंदिर में अपने प्रभु गिरिधर गोपाल का भजन-कीर्तन करते करते सन 1546 के आसपास वे भगवान की मूर्ति में सदा के लिए विलीन हो गयी।

14. मीराँबाई के दादाजी के नाम क्या थे?

उत्तर: मीराँबाई के दादाजी के नाम राव दूदाजी थे।

15. सप्रसंग व्याख्या कीजिए:

(क) हरि थें हरया __________ हरा म्हारी पीर।

उत्तर: प्रसंग: प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक अंबर भाग-1 के अंतर्गत कवयित्री मीराँबाई द्वारा विरचित भजन से ली गई है।

संदर्भ: इन पंक्तियों में कवयित्री ने अपने आराध्य कृष्ण जी की भक्त-वत्सलता का वर्णन किया है।

व्याख्या: कवयित्री मीराँबाई सच्चे अर्थ में कृष्ण-प्रेम भक्ति की सजीव प्रतिमा थीं। उनके साहित्य में श्रीकृष्ण भक्ति के पद ही मिलते हैं। वह सम्पूर्णयता श्रीकृष्ण को अपने आपको समपर्ण किया है। वह श्रीकृष्ण को महानता के बारे में कहा है कि कृष्ण भगवान ने भरी राजसभा में द्रौपदी की लज्जा की रक्षा की थी, जिस विष्णु भगवान ने नृसिंह का रूप धारण करके हिरण्यकशिपु को मार कर भक्त प्रहलाद की रक्षा की थी, जिस विष्णु भगवान नंगे पैरों से ही दौड़कर आए और सुहरनि चक्र से शापग्रस्त ग्राह को मारकर गजराज को संकट से मुक्ति दिला दी उस गिरधर प्रभु के सामने मीराँबाई हमेशा माठा है।

17. वाक्य में प्रयोग करके निम्नलिखित लगभग समोच्चरित शब्द जोड़ो के अर्थ का अंतर स्पष्ट करो:

संसार-संचार, तरण-शरण, दिन-दीन, कुल-कूल, कली-कलि, प्रसाद-प्रासाद, अभिराम-अविराम, पवन-पावन

उत्तर: संसार (पृथ्वी): पेड़-पौधों के बिना संसार अस्तित्व संकट में आ जायेगा।

संचार (परिभ्रमण): संत लोग यहाँ-वहाँ संचार करते रहते हैं।

चरण (पैर): रामु ने दादी के चरण स्पर्श किए।

शरण (दीक्षा): दादाजी ने उस सत्र में शरण लिया है।

दिन (दिवस): आज का दिन बहुत ही शुभ है।

दीन (गरीब): हमें दीन लोगों की सहायता करनी चाहिए।

कुल (वंश): रहीम ने अपन कर्मों के द्वारा कुल की प्रतिष्ठा बढ़ाई।

कूल (किनारा): कूल पर बहुत सारे पेड़ है।

कली (अधखिला फूल): बाग में अनेक कलियाँ खिलने वाली हैं।

कलि (पाप, झगड़ा): इस कलियुग में छोटे बड़ों का सम्मान करना भी भूल गये हैं।

प्रसाद (भोग): पूजा में तरह-तरह के प्रसाद चढ़ाए जाते हैं।

प्रासाद (महल): राजा का प्रासाद लाल पत्थर से बनाई गयी है।

अभिराम (सुन्दर): असम का प्राकृतिक दृश्य अत्यंत अभिराम है।

अविराम (लगातार): सुबह से अविराम बारिश हो रही है।

पवन (हवा): जीवन में पवन नित्यान्त आवश्यक है।

पावन (पवित्र): गंगा एक पावन नहीं है।

18. निम्नलिखित शब्दों के लिंग निर्धारित करो:

कवि, पति, अधिकारिणी, भगवान, बालिका, भक्तिन, दादा, राजा।

उत्तर: कवि — कवयित्री।

पति — पत्नी।

अधिकारिणी — अधिकार।

दादा — दादी।

भगवान — भगवती।

बालिका — बालक।

भक्तिन — भक्त।

राजा — रानी।

19. विलोमार्थक शब्द लिखो:

पूर्ण, मिथ्या, सजीव, कुसंग, प्राचीन, सुन्दर, कोमल, अपमान, अपना, गुप्त, विरोध, आनंद

उत्तर: पूर्ण — अपूर्ण।

मिथ्या — सत्य।

सजीव — निर्जीव।

कुसंग — सत्संग।

प्राचीन — नवीन।

सुन्दर — कुरूप।

कोमल — कठोर।

अपमान — सम्मान।

अपना — पराया।

गुप्त — प्रकट।

विरोध — शांत।

आनंद — निरानंद।

20. निम्नलिखित शब्दों के वचन परिवर्तन करो:

उत्तर: कविता — कविताएँ।

निधि — निधियाँ।

पौधा — पौधे।

औरत — औरतें।

सखी — सखियाँ।

बहू — बहुएँ।

कलम — कलमें।

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