SEBA Class 9 Hindi Chapter 10 दोहा-दशक

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SEBA Class 9 Hindi Chapter 10 दोहा-दशक

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दोहा-दशक

बोध एवं विचार:

1. सही विकल्प का चयन करो:

(क) कवि बिहारीलाल किस काल के सर्वश्रेष्ठ कवि माने जाते हैं?

1. आदिकाल के।

2. रीतिकाल के।

3. भक्तिकाल के।

4. आधुनिक काल के।

उत्तरः 2. रीतिकाल के।

(ख) कविवर विहारी की काव्य-प्रतिभा से प्रसन्न होनेवाले मुगल सम्राट थे-

1. औरंगजेब।

2. अकबर।

3. शाहजहाँ।

4. जहाँगीर।

उत्तरः 3. शाहजहाँ।

(ग) कवि बिहारी का देहावसान कब हुआ?

1. 1645 ई. को।

2. 1660 ई. को।

3. 1662 ई. को।

4. 1663 ई. को।

उत्तरः 4. 1663 ई. को।

(घ) श्रीकृष्ण के सिर पर क्या शोभित है?

1. मुकुट।

2. पगड़ी।

3. टोपी।

4. चोटी।

उत्तरः 1. मुकुट।

(ङ) कवि बिहारी ने किन्हें सदा साथ रहनेवाले संपत्ति मना है?

1. राधारी।

2. श्रीराम को।

3. यदुपति कृष्ण को।

4. लक्ष्मी को।

उत्तर: 3. यदुपति कृष्ण को।

2. निम्नलिखित कथन शुद्ध है या अशुद्ध बताओ:

(क) हिन्दी के समस्त कवियों में भी बिहारीलाल अग्रिम पंक्ति के अधिकारी हैं। 

उत्तरः शुद्ध।

(ख) कविबर बिहारी को संस्कृत और प्राकृत के प्रसिद्ध काव्य-ग्रंथों के अध्ययन का अवसर प्राप्त नहीं हुआ था।

उत्तरः अशुद्ध।

(ग) 1645 ई. के आस-पास कवि बिहारी वृत्ति लेने जयपुर पहुचे थे।

उत्तरः शुद्ध।

(घ) कवि विहारी के अनुसार ओछा व्यक्ति भी बड़ा बन सकता है।

उत्तरः शुद्ध।

(ङ) कवि बिहारी का कहना है कि दुर्दशाग्रस्त होने पर भी धन का संचय करते रहना कोई नीति नहीं है।

उत्तरः अशुद्ध।

3. पुर्ण वाक्य में उत्तर दो:

(क) कवि बिहारी ने मुख्य रूप से कैसे दोहों की रचना की है?

उत्तरः कवि बिहारी ने मुख्य रूप से प्रेम-शृंगार की दोहों रचना की है।

(ख) कविवर बिहारी किनके आग्रह पर जयपुर में ही रूक गए?

उत्तरः महाराज जयसिंह और चौहानी रानी के आग्रह पर कवि विहारी जयपुर में ही रूक गए।

(ग) कवि बिहारी को ख्याति का एकमात्र आधार ग्रंथ किस नाम से प्रसिद्ध है?

उत्तरः कवि बिहारी की ख्याति का एकमात्र आधार ग्रंथ – ‘बिहारी सतसई’ नाम से प्रसिद्ध है।

(घ) किसमें किससे सौ गुनी अधिक मादकता होती है?

उत्तरः कनक (सोना) में कनक (धतुरा बीज) से अधिक मादकता है।

(ङ) कवि ने गोपीनाथ कृष्ण से क्या-क्या न गिनने की प्रार्थना की है?

उत्तरः कवि ने गोपीनाथ कृष्ण से प्रार्थना की है कि उनके गुण-अवगुण को विचार न करे।

S.L No.CONTENTS
Chapter – 1हिम्मत और जिंदगी
Chapter – 2परीक्षा
Chapter – 3बिंदु-बिंदु विचार
Chapter – 4चिड़िया की बच्ची
Chapter – 5आप भले तो जग भला
Chapter – 6चिकित्सा का चक्कर
Chapter – 7अपराजिता
Chapter – 8मणि-कांचन संयोग
Chapter – 9कृष्ण महिमा
Chapter – 10दोहा-दशक
Chapter – 11नर हो, न निराश करो मन को
Chapter – 12मुरझाया फूल
Chapter – 13गाँव से शहर की ओर
Chapter – 14साबरमती के संत
Chapter – 15चरैवेति
Chapter – 16टूटा पहिया

4. अति संक्षेप में उत्तर दो:

(क) किस परिस्थिति में कविवर बिहारी काव्य-रचना के लिए जयपुर में ही रूक गए थे?

उत्तरः अपनी काव्य-प्रतिभा के कारण कई राज्यों से बिहारी को वृत्ति मिलने लगी। 1645 ई. के आस-पास वे वृत्ति लेने जयपुर पहुँचे था। वहाँ के महाराज जयसिंह और चौहानी रानी के आग्रह पर काव्य रचना के लिए कवि बिहारी जयपुर में ही रूक गए।

(ख) ‘यहि बानक मो मन बसौ, सदा बिहारी लाल’ का भाव क्या है?

उत्तरः ‘यहि बानक मो मन बसौ, सदा बिहारीलाल’ का भाव यह है कि कवि अपने आराध्या श्रीकृष्ण को उसी रूप से, जिन में सिर पर मुकुट, कमर में पीतांवर धोति, हाथ में मुरली और उर में माला है, वैसे ही वेष में श्रीकृष्णजी कवि के मन में हमेशा बसे रहे।

(ग) ‘ज्यो ज्यो बूड़े श्याम रंग त्यों, त्यों उज्जलु होई’ – का आशय स्पष्ट।करो।

उत्तरः इसका आशय यह है कि काले रंग में डूबने सामान काली होती है, पर चित्त श्याम रंग में जैसे डूबता है, वैसे उज्जल होता है।

(घ) “आँटे पर प्रानन हरै, काँटे लौं लगि पाय” – के जरिए कवि क्या कहना चाहते हैं?

उत्तरः इसके द्वारा कवि यह कहना चाहता है कि नम्र होते हुए देखकर इन पर विश्वास न कीजिए क्यों कि दुष्ट का दुसह स्वभाव है। वे काँटे जैसा दुर्जन भयंकर होता है।

(ङ) मन काँचै नाचै वृथा, साँचै राँचै राम – का तात्पर्य बताओ।

उत्तरः इसका तात्पर्य यह है कि जो लोग कच्चे मन के होते है वे बेकार ही नाचते है। अर्थात माला जपना, तिलक लगाना – यो सब केवल दिखाने के लिए ही है। राम तो सच्चे से ही प्रसन्न होता है।

5. संक्षेप में उत्तर दो:

(क) कवि के अनुसार अनुरागी चित्त का स्वभाव कैसा होता है?

उत्तरः कवि के अनुसार अनुरागी चित्त का स्वभाव श्याम रंग की तरह होता है। देखने की बात यह है कि काले रंग में कोई चीज डूबने से चीज काली होती है पर चित्त श्याम रंग में जैसे डुबाया जाता है, वैसी ही उज्जल होता है। अर्थात श्याम पर मन लगाने प्रेम बढ़ जाता है।

(ख) सज्जन का स्नेह कैसा होता है?

उत्तरः सज्जन का स्नेह गम्भीर होता है। वह गभीरता घटने पर भी निष्प्रभ नहीं होता। अर्थात उसका स्नेह हमेशा बनटे ही रहते हैं। जैसे चोल के रंगो से रंगा हुआ कपड़ा हमेशा रंगा ही रहते हैं, चाहे कपड़ा फट जाये तो रंग नहीं छोड़ते। वैसा ही सज्जन का स्नेह है।

(ग) धन के संचय के संन्दर्भ में कवि ने कौन-सा उपदेश दिया है?

उत्तरः धन के संचय के संन्दर्भ कवि ने यह उपदेश दिया है कि मित्र के नीति नहीं है, दुर्दशाग्रस्त होने पर भी जो रखा जाए धन, खाने और खर्च करने के बाद अगर बच जाए तो संचय कीजिए करोड़ की संख्या में।

(घ) दुर्जन के स्वभाव के बारे में कवि ने क्या कहा है?

उत्तरः दुर्जन के स्वभाव के बारे में कवि ने कहा कि नम्र होते हुए देखकर दुर्जन पर विश्वास न कीजिए, क्योंकि अवसर मिलने पर वे काँटा की तरह पैर में चुभकर प्राणों का हरण करते है।

(ङ) कवि बिहारी किस वेश में अपने आराध्य कृष्ण को मन में बसा लेना चाहते है?

उत्तरः कवि बिहारी अपने आराध्य कृष्ण को मन में इस वेश में बसा लेना चाहते है कि जिसके सिर पर मुकुट, कमर में काछनी, हाथ में मुरली और उर में बनमाला सुशोभित है।

(च) अपने उद्धार के प्रसंग में कवि ने गोपीनाथ श्रीकृष्ण जी से क्या निवेदन किया है?

उत्तरः अपने उद्धार के प्रसंग में कवि बिहारीलाल ने गोपीनाथ श्रीकृष्ण जी से यह निवेदन किया है कि गोपीनाथ श्रीकृष्णजी मेरे चित्त को उसी को तरह उद्धार कीजिए, जैसा बर्ताव अन्य पापियों के साथ किया है, हे गोपीनाथ मेरे गुण, अवगुण समूहों को न गिनिए, सिर्फ मेरा उद्धार कीजिए।

(छ) कवि बिहारी की लोकप्रियता पर एक संक्षिप्त टिप्पणी प्रस्तुत करो।

उत्तरः कविवर बिहारीलाल हिन्दी साहित्य के अंतर्गत रीतिकाल के सर्वश्रेष्ठ कवि माने जाते है। हिन्दी के समस्त कवियों में भी आप अग्रिम पंक्ति के अधिकारी है। उन्होंने प्रमुख रूप से प्रेम शृंगार और गौण रूप से भक्ति एवं नीति के दोहों की रचना करके अपार लोकप्रियता प्राप्त की थी। उनकी यह लोकप्रियता आज भी बनी हुई है और आगे भी बनी रहेगी।

6. सम्यक उत्तर दो:

(क) कवि बिहारीलाल का साहित्यिक परिचय दो।

उत्तरः कवि बिहारी लाल को हिन्दी साहित्य के रीतिकालीन कवियों में से सर्वश्रेष्ठ माने जाते हैं। उन्होंने प्रमुख रुप से प्रेम-शृंगार और गौण रुप से भक्ति एवं नीति के दोहों की रचना करके अपार लोकप्रियता प्राप्त की थी।

कवि बिहारी का जन्म 1595 ई गवालियर के निकट बसुवा गोविन्दपुर नामक गाँव में हुआ था। बिहारीलाल ने महन्त नरहरि दास के पास संस्कृत और प्राकृत के प्रसिद्ध काव्य-ग्रन्थों का अध्यायन किया था। आप में दरवारी भाषा फारसी में काफी अधिकार था। एक बार वे एक फारसी रचना के साथ मुगल सम्राट शाहजहाँ से मिले थे। बिहारी की काव्य-प्रतिभा से सम्राट बड़े ही प्रसन्न हुए और उनके कृपा पात्र बने।

सन् 1645 ई के आस-पास वे जयपुर पहुँचे थे। वहा के महाराज जयसिंह और चौहानी रानी के आग्रह पर कवि बिहारी जयपुर में ही रुक गये तथा प्रत्येक दोहे के लिए एक अशफी की शर्त पर काव्य रचना करने लगे। 1662 ई तक उनकी ‘सतसई’ पूरी हुई। 1663 ई में कवि बिहारी का देहावसान हुआ।

(ख) ‘बिहारी सतसई’ पर एक टिप्पणी लिखो।

उत्तर: ‘बिहारी सतसई’ – कबि बिहारी लाल की ख्याति का आधार उनका एकमात्र ‘सतसई’ ग्रन्थ है, जो बिहारी सतसई नाम से प्रसिद्ध है। यह लगभग सात सौ दोहों का अनुपम संग्रह है। इसे शृंगार, भक्ति और नीति की त्रिवेणी भी कहते हैं। इस ग्रंथ की लोकप्रियता के संदर्भ में युरोपीय विद्वान डॉ. ग्रियर्सन ने कहा है कि यूरोप में इसके समकक्ष कोई भी रचना नहीं है। गागर में सागर भरने के समान कविवर बिहार ने दोहे जैसे छोटे-से छंद में लंबी-चौड़ी बात भी संक्षेप में कह दी है। सरस, सुमधुर और पौढ़ ब्रजभाषा में रचित ये दोहे काव्य-रसिकों पर गहरा प्रभाव छोड़ते हैं।

7. सप्रसंग व्याख्या करो:

(क) ‘कोऊ कोरिक संगहो …………. बिपति बिदारनहार।।’

उत्तरः प्रसंग: प्रस्तुत अवतरण हमारी पाठ्य पुस्तक ‘आलोक’ के अंतर्गत कविवर बिहारीलाल के ‘दोहा दशक’ से लिया गया।

सन्दर्भ: इस दोहे में भक्त भगवान को ही अपनी सम्पत्ति मानता है। भक्त का धन संतोष है, जिसे भगवान भक्ति से ही मिलता है। कवि संसार को माया और धन सम्पत्ति तुच्छ कहकर भगवान को ही अपना सम्पत्ति कहा है।

व्याख्या: कवि का कहना है कि कोई व्यक्ति इस संसार में करोड़ की सम्पत्ति संग्रह करले और चाहे लाखों, हजारों को भी जोड़ ले, तो भी आत्मा को संतोष नहीं मिलता। इसलिए कवि बिहारीलाल जी यदुपति श्रीकृष्ण को ही अपना सम्पत्ति माना है। क्योंकि श्रीकृष्णजी सबके सर्वोपरि विपत्ति को दूर करनेवाले है।

(ख) ‘जय-माला, छापैं, तिलक ………… साँचै राँचै रामु।।’

उत्तरः प्रसंग: प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘आलोक’ के अंतर्गत ‘दोहा दशक’ से लिया गया है।

सन्दर्भ: यहाँ कवि विहारीलाल जी ने भन्द (झूठ) भक्त के बारे में बताया है, जो माला के डाने गिण-गिण कर मंत्र उच्चारण जप करते है।

व्याख्या: कवि जी बताया है कि माला अपने से या तिलक लगाने से कोई भक्ति नहीं होता। क्योंकि भक्ति तो होता है सच्चा मन, कर्म सेवा से ही है। माला जपना, तिलक लगाना आदि कार्य सिर्फ दिखाने के लिए ही है। सही अर्थ में कोई लाभ नहीं है। ये कार्य कुछ वैसे दिलवाले लोक ही करते है जिसका दिल कच्चे होते है। ये कार्य बिलकुल बेकार है।

(ग) ‘कनक कनक तैं सौ गुनी ……………. इहिं पाएँ बौराइ॥

उत्तरः प्रसंग: प्रस्तुत अवतरण हमारी पाठ्य पुस्तक ‘आलोक’ के अंतर्गत कवि बिहारीलाल द्वारा रचित ‘दोहा दशक’ से लिया गया है।

सन्दर्भ: यह कवि का सूक्ति-कथन है। इस दोहे में कवि बिहारीलाल ने धन के मद का वर्णन किया है और धतूरे से उसे सौ गुणा अधिक मादकता बतलाया है।

व्याख्या: कवि का कहना है कि कनक (धतूरा) की अपेक्षा कनक (सोना, सम्पत्ति) में सौ गुनी अधिक मादकता है और धन का मद काफी गहरा होता है। क्योंकि धतूरे के खाने पर लोग पागल हो जाती है लेकिन स्वर्ण या सम्पत्ति की प्राप्ती के साथ ही लोग पागल हो जाते हैं। इसलिए कवि जी कहा कि धतूरे अपेक्षा सोन में अधिक मादकता है।

(घ) ‘ओछे बड़े न ह्वै सकैं ………….. फारि निहारै नैन।’

उत्तरः प्रसंग: प्रस्तुत दोहा कविवर बिहारीलाल द्वारा रचित ‘दोहा दशक’ से लिया गया है।

सन्दर्भ: इस दोहे में कवि बिहारीलाल ने औछों (छोटा) का उपहास किया है।

व्याख्या: कवि का कहना है कि जो छोटे है, वे कभी बड़े नही हो सकते। लाख प्रयत्न के वावजूद आकाश की सीमा का विस्तर नहीं किया जा सकता है। चाहे अपनी आँखो को भले ही फाड़कर देखा जाए परन्तु वे कभी भी स्वाभाविक आकार से बड़ी नही हो पाती।

भाषा एवं व्याकरण ज्ञान:

(क) संधि-विच्छेद करो:

देहावसान, लोकोक्ति, उज्जल, सज्जन, दुर्जन

उत्तरः देहावसान = देह + अवसान।

लोकोक्ति = लोक + उक्ति।

उज्जल = उत् + जल।

सज्जन = सत् + जन।

दुर्जन = दु: + जन।

(ख) विलोम शब्द लिखो:

अनुराग, पाप, गुण, प्रेम, सज्जन, मित्र, गगन, श्रेष्ठ

उत्तरः 

शब्दविलोम शब्द
अनुरागपुण्य
गुणदोष
प्रेमघृणा
सज्जनदुर्जन
मित्रशत्रु
गगनपखताल
श्रेष्ठनिकृष्ट

(ग) निम्नलिखित दोहों को खड़ीबोली (मानक हिन्दी) गद्य में लिखो:

(i) मीत न नीत गलीत ह्वै, जो धरियै धन जोरि।

खाए खरचैं जो जुरै, तौ जीरिए करोरि।।

उत्तरः मित्र नीति नहीं है दुर्दशाग्रस्त होने पर भी जो रखा जाए धन, खाने और खर्च करने के बाद अगर बच जाए तो संचय कीजिए करोड़ की संख्या में।

(ii) न ए बिससिये लखि नये, दुर्जन दुसह सुभाय।

ऑट पर प्रानन हरै, काँटे लौ लगि पाय।।

उत्तरः नम्र होते हुए देख कर दुर्जन पर विश्वास न कीजिए, क्योंकि अवसर मिलने पर वे काँटा की तरह पैर में चुभकर प्राणों का हरण करते हैं।

(घ) निम्नलिखित समस्त पदों का विग्रह करके समास का नाम बताओ:

सतसई, गोपीनाथ, गुन-औगुन, काव्य-रसिक, आजीवन।

विग्रहसमास का नाम
सतसई = सत (सात) सई (सौका समाहार)समाहार द्वंद
गोपीनाथ = गोपीयों का नाथषष्ठी तत् पुरुष
गुन-औगुन = गुन + औगुनद्वंद समास
काव्य-रसिक = काव्य + रसिकषष्ठी तत् पुरुष
आजीवन = जीवन + पर्यतंतत् पुरुष

(ङ) अंतर बनाए रखते हुए निम्नलिखित शब्द-जोरों के अर्थ बताओ:

कनक-कनक, हार-हार, स्नेह-स्नेह, हल-हल, कल-कल

उत्तरः कनक = सोना

कनक = धतुरा

हार = माला

हार = क्षति

स्नेह = प्यार

स्नेह = प्रेम

हल = सवाल का जवाब

हल = खेत जीतने वाला यंत्र

कल = आनेवाला दिन

कल = कोमल।

शब्दार्थ एवं टिप्पणी

(1)

सीस – सिर।

कटि – कमर।

काछनी – पीतांबर, घुटनों तक पहनी हुई धोती।

कर – हाथ।

माल – माला, वैजयंती माला।

उर – वक्षस्थल।

बानक – वेश, रूप, बनाव।

मो – मेरा।

बसौ – निवास कीजिए, बसा हुआ है।

बिहारीलाल – कृष्ण, कवि का नाम।

(2)

कोऊ – कोई।

कोरिक – करोड़।

संग्रहो – संग्रह, एकत्र करना।

मो – मेरी।

संपति – संपत्ति।

जदुपति – यदुपति, कृष्ण।

बिपति – बिपत्ति, बिपद।

बिदारनहार – नष्ट, दूर करने वाला।

(3)

या – इस।

अनुरागी – अनुरगगमयी, प्रेमी, लाल।

चित्त – हृदय।

गति – स्वभाव।

नहिं – नहीं।

बड़ै – डुबता है।

स्याम – कृष्ण, काला।

उज्जलु – उज्जल, पवित्र, श्वेत।

(4)

जप – मंत्र का स्मरण।

छापै – शरीर के किसी अंग पर चित्र बना लेना।

तिलक – टीका, मस्तक पर चंदन आदि का चिह्न लगाना।

सरै – सिद्ध होना।

न – नहीं।

एकौ – एक भी।

कामु – काम, कार्य।

काँचै – कच्चा, काँच का, चंचल।

बृथा – बेकार।

साँचै – सच्चा, साँचा, दृढ़।

राँचै – निचस करके प्रसन्न होता है।

रामु – रामजी, आराध्य।

(5)

कीजै – कीजिए, करुणा लाइए।

चित – चित्त, हृदय में।

सोई – वही।

तरे – उद्धार हो।

गुन – गुण, अच्छाई।

औगुन – अवगुण, दोष, बुराई।

गननु – समूहों को।

गनौ न – न गिनिए, गणना मत कीजिए।

गोपीनाथ – गोपियों के नाथ श्रीकृष्ण।

(6)

चटक – चमक, सहानुभूति।

न छाँड़तु – नहीं छोड़ता।

सज्जन – सत्पुरुष।

नेहु – स्नेह, प्यार।

गंभीरु – गंभीरता, गहराई।

फीको परे न – फीका नहीं पड़ता।

बरु – भले ही।

रंग्यौ – रंग से।

चीरु – चीर, वस्त्र, कपड़ा।

(7)

न ए बिससिये – इनपर विस्वास न कीजिए।

लखि – देखकर, देखते ही।

नये नम्र होते हुए।

दुर्जन – दुष्ट लोग।

दुसह – दुस्सह।

सुभाय – स्वभाव।

आँटे पर – अंटे, दुःख में पड़ने पर, अवसर मिलने पर।

प्रानन हरै – प्राणों का हरण करते हैं।

काँटै – काँटा।

लौं – की तरह, के समान।

लगि पाय – पाँव, पैर में चुभकर।

(8)

कनक – सोने, स्वर्ण में, धन-संपत्ति में।

कनक तैं – धतुरे से।

मादकता – उन्मत्तता, बावलपन, पागल बनाने की क्षमता।

अधिकाइ – अधिक, ज्यादा होती है।

उहिं – उसे, धतुरे को।

खाए – खाने पर।

बैराए – पागल होता है।

जगु – जगत, दुनिया।

इहिं – इसे, सोने को।

पाएँ – पाने पर ही।

बौराइ – पागल हो, अहंकार से भर जाता है।

(9)

मीत – मित्र, दोस्त।

न नीत – नीति नहीं है।

गलीत ह्वै – दुर्दशाग्रस्त होने पर भी।

जो धरियै – जो रखा जाए।

धन जोरि – धन, रूपये-पैसे का संचय करके।

तौ – तो, उस स्थिति में।

जोरिए – संचय कीजिए।

करोरि – करोड़ की संख्या में।

ओछे – छोटा, निकृष्ट व्यक्ति, नीचे स्वभाव वाला।

बड़े – बड़ा, महान।

न ह्वै सकैं – नहीं हो सकता।

लगौ – लग जाए, छू ले।

सतर ह्वै – ऊँचा होकर, बढ़कर।

गैन – गगन, आकाश।

दीरघ – दीर्घ, बड़ा, विशाल।

होंहि न – हो नहीं पाता।

नैंक हूँ – कभी भी।

नैन – नयन आँख। 

दीरघ होंहि …………….. निहारे नैन – आँखों को भले ही फाड़कर देखा जाए परंतु वे कभी भी अपने स्वाभाविक आकार से बड़ी नहीं हो पातीं।

खाए खरचै जो जुरै – खाने और खर्च करने के बाद अगर बच जाए।

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