SEBA Class 9 Hindi Chapter 11 नर हो, न निराश करो मन को

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SEBA Class 9 Hindi Chapter 11 नर हो, न निराश करो मन को

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नर हो, न निराश करो मन को

अभ्यास माला:

बोध एवं विचार

(अ) सही विकल्प का चयन करो:

1. कवि ने हमें प्रेरणा दी है –

(क) कर्म की।

(ख) आशा की।

(ग) गौरव की।

(घ) साधन की।

उत्तरः (क) कर्म की।

2. कवि के अनुसार मनुष्य अमरतव प्राप्त ही सकता है –

(क) अपने नाम से।

(ख) धन से।

(ग) भाग्य से।

(घ) अपने व्यक्तित्व से।

उत्तरः (घ) अपने व्यक्तित्व से।

3. कवि के अनुसार ‘न निराश करो मन को’ का आशय है –

(क) सफलता प्राप्त करने के लिए आशावान होना।

(ख) मन में निराश तो हमेशा बनी रहती है।

(ग) मनुष्य अपने प्रयत्न से असफलता को भी सफलता में बदल सकता है।

(घ) आदमी को अपने गौरव का ध्यान हमेशा रहता है।

उत्तरः (ग) मनुष्य अपने प्रयत्न से असफलता को भी सफलता में बदल सकता है।

(आ) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लिखो:

1. तन को उपयुक्त बनाए रखने के क्या उपाय है?

उत्तरः तन को उपयुक्त बनाए रखने के लिए कवि ने कहाँ कि मनुष्य रोज कुछ न कुछ काम करना चाहिए। हमारे अनुकुल अवसर को हाथ से जाने नहीं देना चाहिए। जगत में रहकर आपने आप कुछ काम के लायक बनना चाहिये। जिसमें हम व्यर्थ न हो पाए। निराशा व्यर्थ होने का अन्य नाम है। इसलिए कर्म व्यस्तता ही तन को उपयुक्त बनाए रखने का उपाय है।

2. कवि के अनुसार जग को निरा सपना क्यों नहीं समझना चाहिए?

उत्तर: कवि के अनुसार जग को निरा सपना इसलिए नहीं समझना चाहिए कि मनुष्य का जीवन कर्ममय हैं। कवि कहता है कि मनुष्य को अनुकूल अवसर को अपने हाथ जाने देना नहीं चाहिए। जगत में रहकर अपने आप को कुछ न कुछ काम के लायक बनाना चाहिए। क्योंकि अपनी सफलता का द्वार कर्म द्वारा ही संभव हो सकता है।

3. अमरत्व-विधान से कवि का क्या तात्पर्य है?

उत्तरः अमरत्व विधान से कवि का तात्पर्य यह है कि हम अपने आप को अमृत पान करके अमर बना सकते है। अपने कर्म के द्वारा ही जंगल में स्वतः लगने वाली आग की तरह संसार रूपी जंगल को जलाकर अपना नाम अमर कर सकते हैं।

4. अपने गौरव का किस प्रकार ध्यान रखना चाहिए?

उत्तरः हमें अपने गौरव का नित ध्यान रखना चाहिए। क्योंकि हमारे जो कुछ हैं, वह ध्यान रहे, चाहे सब कुछ चला जाए, पर मान बना रहे, मरने के बाद भी यह गान गुंजित रहे, इस तरह अपने गौरव का ध्यान रखना चाहिए।

5. कविता का प्रतिपाद्य अपने शब्दों में लिखो।

उत्तरः कविता का प्रतिपाद्य इस प्रकार है- कवि गुप्तजी ने प्रस्तुत कविता में मनुष्य को कर्मठता का संदेश दिया है। कवि कहता है कि मनुष्य को अनुकूल अवसर हाथ से नहीं जाने देना चाहिए। मनुष्य को चाहिए कि वह अपना महत्व एवं व्यक्तित्व को पहचाने, तभी उसे आत्म गौरव और अमरत्व प्राप्त हो सकता है। निराश होकर बैठना मनुष्य के लिए लज्जाजनक है।

S.L No.CONTENTS
Chapter – 1हिम्मत और जिंदगी
Chapter – 2परीक्षा
Chapter – 3बिंदु-बिंदु विचार
Chapter – 4चिड़िया की बच्ची
Chapter – 5आप भले तो जग भला
Chapter – 6चिकित्सा का चक्कर
Chapter – 7अपराजिता
Chapter – 8मणि-कांचन संयोग
Chapter – 9कृष्ण महिमा
Chapter – 10दोहा-दशक
Chapter – 11नर हो, न निराश करो मन को
Chapter – 12मुरझाया फूल
Chapter – 13गाँव से शहर की ओर
Chapter – 14साबरमती के संत
Chapter – 15चरैवेति
Chapter – 16टूटा पहिया

(इ) सप्रसंग व्याख्या करो:

1. सँभलो कि सु-योग न जाए चला,

कब व्यर्थ हुआ सदुपाय भला?

उत्तरः प्रसंग: प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक ‘आलोक’ के अन्तर्गत राष्ट्र कवि मैथिली शरण गुप्त द्वारा रचित ‘नर हो न निराश करो मन को’ शीर्षक कविता से लिया गया है। यहाँ कवि गुप्तजी समय की सद उपयोग के बारे में बताया है।

व्याख्या: यहाँ कवि गुप्तजी कहा कि मनुष्य को अनुकूल अवसर को हाथ से जाना नहीं देना चाहिए। मनुष्य कर्मठता बनना चाहिए। संसार में अपना पहचान रखने के लिए कुछ काम जरुर करना पड़ता है। अगर उसमें

व्यर्थ होना पड़ता है तो पिछे हटना नहीं चाहिए। मनुष्य को चाहिए कि वह अपने महत्व एवं व्यक्तित्व को पहचाने, तभी उसे आत्म गौरव और अमरत्व प्राप्त हो सकता है।

2. जब प्राप्त तुम्हें सब तत्व यहाँ,

फिर जा सकता वह सत्व कहाँ?

उत्तरः प्रसंगः प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक ‘आलोक’ के अन्तर्गत राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त द्वारा रचित ‘नर हो, न निराश करो मन को’ शीर्षक कविता से लिया गया है। यहाँ कवि गुप्त जी संसार की अमरत्व-विधान का तात्पर्य के बारे में बता रहे है।

व्याख्या: कवि गुप्तजी का कहना है कि यह संसार कर्ममय है। लोग अपना कर्म के द्वारा यहाँ अपना नाम छोड़ा जा सकते है। हम अपने आप को अमृत पान करके अमर बना सकते हैं। अर्थात अपने कर्म के द्वारा ही जंगल में

स्वतः लगने वाली आग की तरह संसार रूपी जंगल को जला कर अपना नाम अमर कर सकते हैं। इसलिए कवि गुप्तजी हमें अपना कर्म तथा यहाँ रहने का अधिकार बता कर कहा कि तुम्हे यहाँ सब तत्व को मिलेगा। तुम्हारे हिस्सा कही नहीं जाएगा।

भाषा एवं व्याकरण ज्ञान:

1. कविता के आधार पर इन शब्दों के तुकांत शब्द लिखोः

अर्थ, तन, चला, सपना, तत्व, यहाँ, ज्ञान, मान

उत्तरः 

अर्थव्यर्थ
तनमन
चलाभला
सपनाअपना
तत्वसत्व
यहाँकहाँ
ज्ञानध्यान
मानगान

2. इन शब्दों में से उपसर्ग अलग करो:

व्यर्थ, उपयुक्त, सु-योग, सदुपाय, प्रशस्त, अवलम्बन, निराश

उत्तरः 

व्यर्थवि
उपयुक्तउप
सु-योगसु
सदुपायसद
प्रशस्तप्र
अवलम्बनअव
निराशनि

3. इन शब्दों के विलोम शब्द लिखो:

निज, उपयुक्त, निराश, अपना, सुधा, ज्ञान, मान, जन्म

उत्तरः 

निजपराया
उपयुक्तअनुपयुक्त
निराशआशा
अपनादुसरा
सुधागरल
ज्ञानअज्ञान
मानअपमान
जन्ममृत्यु

4. इन शब्दों के तीन-तीन पर्यायवासी शब्द लिखो:

नर, जग, अर्थ, पथ, अखिलेश्वर।

उत्तरः नर – मानुष, आदमी, इंसान।

जग – दुनीया, पृथ्वी, धरा, संसार।

अर्थ – पैसा, रुपया, धन, बित।

पथ – सड़क, रास्ता, मार्ग।

अखिलेश्वर – भगवान, गोपीनाथ, प्रभु।

5. ‘अमरत्व’ शब्द में ‘त्व’ प्रत्यय लगा है। भाववाचक ‘त्व’ प्रत्यय खासकर भाववाचक संज्ञा का द्योतक है।

‘त्व’ प्रत्ययवाले किन्हीं दस शब्द लिखो।

उत्तरः ‘त्व’ प्रत्ययवाले शब्द: बीरत्व, अस्तित्व, महत्व, देवत्व, प्रार्थित्व, तत्व, सत्व, व्यक्तित्व, दायित्व, पुरुषत्व, धनत्व।

शब्दार्थ और टिप्पणी:

जग – संसार।

उपयुक्त – ठीक।

तन – शरीर।

सदुपाय – अच्छा उपाय।

निरा – केवल।

पथ – रास्ता।

प्रशस्त करना – विस्तार करना।

अवलम्बन – सहारा।

स्वत्व – पहचान, अपने होने का भाव।

दव – जंगल में स्वतः लगने वाली आग।

सुधा – अमृत।

यव – कानन – संसार रूपी जंगल।

मान – यश, प्रसिद्धि।

मरणोत्तर – मृत्यु के बाद।

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